जिन्दगी के चन्द पहलुओं में

जिन्दगी के चंद पहलुओं में जो कुछ हमने देखा है,
इन्सानों को इन्सानों के हाथों कटते हमने देखा है,
स्वार्थ भाव में अपनों को अपनों के हाथों मरते देखा है,
भाई को भाई के सफलता से चिढ़ते भी हमने देखा है,
जिन्दगी के चंद पहलुओं में जो कुछ हमने देखा है।

संस्कृति को अन्धकार में जाते  हमने देखा है,
पाश्चात्य सभ्यता का हर्षित आलिंगन होते देखा है, 
देश- प्रेम के मेडलों को भूख भाव मे बिकते भी हमने देखा है, 
जिन्दगीं के चंद पहलुओं में जो कुछ हमने देखा है।

वृद्धों को, जीवित सन्तानों के होते वृद्धाश्रमों में मरते हमने देखा है, 
पति-पन्जों का बेरहम हस्ताक्षर पत्नी के कोमल गालों पर देखा है, 
बेवफा बीवियों के गम में ,जागीरें मयखानों में बिकते भी हमने देखा है। 
जिन्दगीं के चंद पहलुओं में जो कुछ हमने देखा है।

एक देश के विभिन्न राज्य को आपस में लड़ते हमने देखा है,
कौम जाति और धर्म के गलियों मे इन्सानों को घुटते देखा है, 
सिद्धांत युद्ध में, ‘वीर भगत’ के आगे आतंकी लिखते हमने देखा है, 
जिन्दगी के चंद पहलुओं में यूं कुछ हमने देखा है।

वतन की शमा पर होते क़ुर्बान पतिंगों को हमने देखा है ,
भाई को देख तिरंगे में लिपटे,  भाई का आह्लादित वच्छ स्थल देखा है, , 
माँ की पथराई आँखों में, अथक इंतज़ार शहीदों का देखा है,
हे वीर देश के अजेय सपूत ! धन्य हुआ मन  जब-जब तुमको हमने देखा है।
जिन्दगी के चंद पहलुओं में यूं कुछ भी हमने देखा है । 
 


तारीख: 21.06.2017                                    मनीष ओझा









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