काश


                 जिंदगी के काश में एक काश यह भी है कि "क्यों कोई खास ... बहुत खास नहीं रहा ?"  अगर जिंदगी एक स्कूल है , और दोस्ती उसमें पढ़ाया गया एक महत्वपूर्ण विषय  ... तो मेरे रिपोर्ट कार्ड पर सबसे कम अंक इसी विषय में है । दोस्ती का तात्पर्य जिस प्रेम , गहराव और जिंदादिली से है , उस हिसाब से दोस्ती के हर पड़ाव पे मै बेतहाशा असफल ही रहा हूं । दोस्ती के अतिरिक्त अन्य विषयो यानि कि अन्य रिश्तों में भी प्रदर्शन औसतन ही रहा है , और कुछ में तो ग्रेस लगने की नौबत तक आ चुकी है । इस पहेली को सुलझाने की उधेड़बुन् से तंग आकर अंत में अपने काश का जवाब मैंने हर रिश्तों की नोटबुक में ढूंढना शुरू किया। 


                 जब कभी भी हम अतीत की किताब के पन्ने खंगालते हैं तो हर काश का जवाब मिलता है कि क्यों मेरा काश .... काश ही रह गया ।  जिंदगी के स्कूल में मेरे सबसे प्रिय और योग्य अध्यापक यानी मेरे अनुभव ने मेरी नोटबुक के लगभग एक चौथाई पन्नों पर एक ही नोट लिखा था "dont expect more " यानी कि " अधिक अपेक्षाएं मत रखो। " अतीत की नोटबुक को अच्छे से अध्ययन कर लेने के बाद मैं जान चुका था कि मेरा हद से ज्यादा अपेक्षाएं रखना ही हर रिश्ते की जड़े कमजोर कर रहा है । हांलांकि ये भी मै भलीभांति जनता हूँ कि अगर कोई इस स्तर की अपेक्षाएं मुझसे करें तो इसमें संदेह करने का कोई प्रश्न ही नहीं है कि मुझसे एक-दो किलो अधिक ही हताशा और निराशा का पुलिंदा अपने बोझिल कांधों पर उठाए ठगा हुआ सा नजर आएगा , क्योंकि अपेक्षाओं की University में state level के टॉपर हम खुद से ही किए वादे और अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरते है ।


                 सब कुछ जानने समझने के बाद भी मेरा दिल सभी अपेक्षाओं को वास्तविकता में तब्दील होते देखना चाहता है । शायद इसीलिए मेरा काश ,  काश था .... काश है ... और काश ही रह जाएगा।


तारीख: 20.03.2018                                    शुभम सूफ़ियाना









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