साहित्य मंजरी के 2 साल

करीब 2 साल पहले एक शनिवार की रात चेन्नई में 2 मित्र काफी समय बाद मिल रहे थे । इंजीनियरिंग ख़त्म किये लगभग 2 साल हो चुके थे और दोनों मित्र अपनी अपनी नौकरी में जुटे थे, एक बैंगलोर में और एक चेन्नई में । तो आज रात जब दोनों मित्र रात के खाने के बाद छत पर थोड़ी चहलकदमी कर रहे थे तो गपशप की श्रृंखला मध्यरात्रि तक चलती रही । अब चूकि हिंदी साहित्य दोनों का पसंदीदा विषय था तो फिर बच्चन, दिनकर, रेणु, प्रेमचंद, धर्मवीर भारती से लेकर काकाजी और कुमार विश्वास जी तक सभी का ज़िक्र तो लाज़मी ही था । 

इन दो मित्रों में से एक मैं था और दूसरा वो जिसे परदे के पीछे रहकर काम करने की आदत है । इसलिए बार बार कहने के बाद भी उसने उसका नाम यहाँ उजागर करने से मना किया । बहरहाल हमारी बातों का सिलसिला हिंदी साहित्य के वीरगाथा काल, भक्ति काल, रीति काल एवं प्रगतिवाद, छायावाद, प्रयोगवाद आदि को लांघता आधुनिक काल तक आ पंहुचा । हम बात कर रहे थे कि कैसे हिंदी साहित्य का नाम लेते ही पुराने कवि ही याद आते हैं, ऐसे कोई भी कवि नही (यदि हैं भी तो इक्का दुक्का ) जो आज की पीढ़ी से सम्बन्ध रखते हैं । इसी बीच मेरे मित्र ने किसी कविता का ज़िक्र किया जो उसने संयोगवश किसी ब्लॉग में पढ़ लिया था और उसे बहुत पसंद आयी थी । मैंने भी उस कविता को पढने की इच्छा जताई पर उस कविता को ढूंढे कैसे । किसी प्रसिद्ध कवि की रचना होती तो सैकड़ों वेबसाइट पर मिल जाती । लेकिन किसी शौकिया कवि की रचना को उसके खुद के ब्लॉग एवं खुद के फेसबुक टाइमलाइन के अतिरिक्त और कहाँ शरण मिल सकती थी । 

Sahitya manjari

मेरा भी हाल कुछ उस अनाड़ी कवि जैसा ही था । उस समय मुझे लिखते हुए कुछ 5-6 साल हो गए थे । मेरी रचनाओं के कुछ मुरीद भी हुए किन्तु ये सब प्रायः मित्र गण ही थे । तो उस छत पर बैठे बैठे मध्य रात्रि को ये बात दिमाग में कौंधी कि कितना अच्छा हो यदि सभी शौकिया साहित्यकारों की रचनाएं उनके जान पहचान वाले लोगों की सीमा लांघ कर ऐसे लोगों तक भी पहुचे जिनका मतलब सिर्फ रचनाओं से हो, साहित्यकार से नहीं । पूरी रात माथापच्ची चली । करीब 3 बजे रात को 3-4 अन्य मित्रों को भी कॉल लगाया गया । अब निद्रा रानी कहाँ आने वली थी हम दोनों के पास । बहुत सारे पहलुओं पर विचार विमर्श के बाद ये निश्चित हुआ कि चलो एक वेबसाइट बनायीं जाये, एक मंच जो सबके लिए हो, वो जो लिखते हैं और एक बड़े पाठक समूह प्राप्त करने के योग्य हैं और वो भी जो लिखते नहीं किन्तु हमेशा हिंदी साहित्य के उपवन में मधुपों की भांति नए कुसुमों की तलाश में मंडराते रहते हैं । 

रात्रि जागरण दिमाग को सो जाने के लिए बाध्य कर रहा था । सवेरा हो चुका था तो सोने से पहले चाय से कुल्ला कर लेना हम दोनों ने सही समझा । चाय की पहली चुस्की लेते ही मेरे मित्र ने कहा- “ साहित्यमंजरी !! ये नाम होगा ! ये ही होगा वो मंच” और ऐसे जन्म हुआ साहित्यमंजरी का । अगले कुछ दिन इस वेबसाइट की रूप रेखा तैयार करने में गए । वेबसाइट बनाने के मामले में हम दोनों अनाड़ी थे । अब ये वेबसाइट पैसा कमाने का जरिया तो था नहीं सो ज्यादा निवेश प्रोफेशनल वेब डिज़ाइनर पर कर नही सकते थे । खैर गूगल महाराज की कृपा से थोडा बहुत सीख कर हमने एक वेबसाइट खड़ी कर ही दी । मेरे फेसबुक के नोट्स से कुछ एक कविता उठा कर सहित्यमंजरी का श्री गणेश किया गया । 

समय बीतता गया । नित नयी चुनौतियां आती रहीं । हर दिन काम से लौटने के बाद जल्दी से रात का खाना खाना और फिर घंटों वेबसाइट को लेकर माथा पच्ची करना । वैसे तो काम कोई बंटा हुआ नही था फिर भी बिन कहे ही कुछ ऐसा हो गया कि वेबसाइट की ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से मेरे मित्र की थी और मेरा काम था नए नए रचनाकारों तक पहुंचना । मेरा मित्र रोज़ नयी नयी योजनायें बताता, जो कई बार तो मेरे पल्ले ही नहीं पड़ती । मैं यूँ ही कुछ हाँ-हूँ बोलकर कन्नी काट लिया करता था । खैर कई बार तकनीकी समस्याएं आयीं किन्तु मेरे मित्र ने हर बार बड़े ही धैर्य से हर समस्या को इन्टरनेट से सलाह कर सुलझा दिया । तब से अब तक सहित्यमंजरी के स्वरुप में कई बदलाव आये । पहले हर रचना के नीचे एक रेटिंग की व्यवस्था थी जिसे हमने बाद में हटा दिया । बाद में इसको फेसबुक और अन्य सोशल साइट्स से जोड़ा गया । हरेक रचनाकार का एक अलग होम पेज भी बनाया गया । अब भी कई बदलाव हैं जो आने वाले दिनों में देखने को मिल सकते हैं । 

खैर इतिहास की बातें बहुत हो गयी हैं । अब बात कुछ आज की । 2 सालों में साहित्यमंजरी नें एक लम्बा सफ़र तय किया है । कविताओं के अलावा अब कहानियां लेख आदि भी नियमित रूप से हमारे पाठक को उपलब्ध होते रहते हैं । परिवार भी अब बढ़ चुका है । साहित्यमंजरी टीम में अब 6 लोग नियमित रूप से काम कर रहे हैं । इसके अलावा करीब 50 साहित्यकार हमसे जुड़े हैं और हजारों पाठक साहित्यमंजरी पर प्रकाशित रचनाओं को बड़े चाव से पढ़ते हैं । कहना चाहूँगा कि 2 साल में जो फासला हमने तय किया वो काफी कम है उस फासले की तुलना में जो हमे तय करना चाहिए था या जो हम कर सकते थे । किन्तु ये सफ़र भी आसान नही था । शुरुआत में नियमित रूप से नयी रचनाएं नही मिलती थी । जान पहचान वाले सभी से बोलना पड़ता था की यदि वो किसी ऐसे को जानते हों जिन्हें साहित्य में रूचि है तो हमारे बारे में जरुर बताएं । बहुत से लोग जिन्हें कॉलेज के दिनों में साहित्यप्रेमी समझते थे उनसे भी बात की । किन्तु अधिकतर लोगों में कॉलेज का वह उत्साह पर समय ने मानो धूल की एक मोटी चादर चढ़ा दी हो । कई बार हम लोग भी काम में ऐसे उलझ जाते कि साहित्यमंजरी को समय देना मुश्किल हो जाता । किन्तु धीरे धीरे ही सही इस यात्रा को हमने जीवंत रखा है । 

यदि निजी तौर पर कहें तो मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला इन 2 सालों में । कई बार बस इस वेबसाइट की वजह से लिखने की इच्छा उत्पन्न होती थी । अपने जैसे और साहित्यकारों को पढ़कर प्रेरणा मिली कुछ नया लिखने की, कुछ अलग लिखने की । सबसे अच्छी बात ये लगी जब हमने देखा की कुछ लोग ऐसे हैं जिन्होंने लिखना ही तब प्रारंभ किया जब उन्हें ये मंच मिला । आज उनलोगों के अपने चाहने वाले हैं जो उत्सुकता से इंतज़ार करते हैं उनकी नयी कृतियों के आने का । हमारे एक कवि ने बताया कि कैसे जब उसने अपने इंजीनियरिंग कॉलेज के पहले दिन सीनियर्स को ये बताया कि वो एक कवि है और साहित्यमंजरी पर लिखता है और जब उसने कुछ कवितायें सुनाई तो वो अपने सीनियर्स का चहिता बन गया । कई बार हम कुछ करना चाहते हैं लेकिन कर नही पाते क्योंकि हमे एक सही मंच एक सही दिशा नही मिलती । यदि साहित्यमंजरी ने किसी एक भी सोये हुए साहित्यकार को एक दिशा दी है, लिखने की प्रेरणा दी है तो मैं मानूंगा कि 2 साल पहले हमने जिस यात्रा की शुरुआत की वह यात्रा सार्थक रही । 

आने वाला समय और बहुत सारी चुनौतियां एवं नयी संभावनाओं को साथ लायेगा । आने वाले समय में हमने बहुत कुछ सोच रखा है । एक मासिक पत्रिका निकालने के विचार पर काफी दिनों से चर्चा चल रही है । एंड्राइड ऐप बनाने एवं साईट में सुधार करने की भी चुनौती है । इसके अलावा सोशल मीडिया की सहायता से और अधिक लोगों से जुड़ना भी एक लक्ष्य है । एक विचार साहित्य से संबंधित विडियो बनाने और साहित्यमंजरी के एक YouTube चैनल का भी है । हमलोग इन सब को यथा संभव पूरा करने में प्रयासरत हैं किन्तु निश्चित ही हमें आपकी सहायता चाहिए । जिन लक्ष्यों की हमने बात की इनमें यदि आप किसी भी तरह आप सहयोग कर सकें तो साहित्यमंजरी टीम को या तो सीधे मुझे संपर्क करें । इसके अलावा भी कोई और सुझाव हों तो हमे जरुर बताएं । हम 2 साल से एक यात्रा पर हैं और आगे भी ये यात्रा जैसे भी हो चलती ही रहेगी, किन्तु यदि आपका साथ हो तो यात्रा निश्चित ही आनंददायक बन जाएगी । 


तारीख: 01.06.2015                                    कुणाल









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है