चार दिन का राष्ट्रप्रेम

बिते कुछ दिनों पहले १५ अगस्त को हमने अपनी आज़ादी की सत्तरवीं वर्षगांठ मनाई। चारो ओर ख़ुशी का माहौल था, बच्चे, बूढ़े, जवान, सब बड़े खुश थे सबने अपना राष्ट्रप्रेम अपने अपने तरीके से जाहिर किया। किसी ने मिठाइयां बाटी, किसी ने उत्सव की तैयारियां की, किसी ने कुछ लोगो को इकठ्ठा करके तिरंगा यात्रा निकली। हमारा राष्ट्रप्रेम सभी दिशाओ में दिखने लगा, सोशल मीडिया के जरिये हमने अपना अकूत राष्ट्रप्रेम जगजाहिर किया, अपने सगे सम्बन्धियों को 'व्हाट्सप्प मैसेज' के जरिये शुभकामनाये भेजीं।

सब कुछ अच्छा लग रहा रहा था पर मुझे न जाने क्यों इस प्रेम में कुछ खोखलापन नज़र आया ,ऐसा लग रहा था जैसे सब कोरमपूर्ति कर रहे है ,मिठाइया इस लिए बाटी गयी ताकि मोहल्ले में हमरा कद बढ़ जाये नाकि इसलिए की स्वतंत्रता दिवस की ख़ुशी, तिरंगा यात्रा इसलिए निकली गयी ताकि अपनी पैठ समाज में और बढे अगला पार्षद का चुनाव जो लड़ना है, सबने दुसरो के लिखे सन्देश अपनों को 'सोशल मीडिया' के द्वारा इसलिए भेजा ताकि कल को वो ये न कहे 'अजी आप तो याद भी नहीं करते'। कुछ लोगो ने तो इस दिन को छुट्टी के रुप में मनाना शुरू कर दिया है।

हमें कुछ वक़्त देना चाहिए इस अविस्मरणीय दिन को, इस दिन के लक्ष्य को। जब देश आज़ाद हुआ तो हमारे प्रधानमंत्री ने अपने वक्तव्य में कहा 'हमें राजनितिक आज़ादी तो मिल गयी पर सामाजिक आज़ादी पाना अभी बाकि है'। हमारा प्रयास होना चाहिए की इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त करे, हर दिन कुछ प्रयास इस दिशा में होना चाहिए, चाहे वो स्वछता का सन्देश देकर किया जाये, चाहे समाज के वंचित वर्ग के लोगो के उत्थान का प्रयास किया जाये या फिर पर्यावरण सुरक्षा में वृक्षारोपण किया जाये, प्रयास सतत होना चाहिए नाकि चार दिन का राष्ट्रप्रेम प्रदर्शित किया जाये। हमें राष्ट्रप्रेम दर्शाने के लिए किसी एक दिन का इंतज़ार करना नाइंसाफी होगी।


तारीख: 18.10.2017                                    शुभम सिंह









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