डर

हम बचपन से हमेशा अपने बड़ों से सुनते आए हैं कि कुछ भी ग़लत करने से पहले भगवान से डरना पर ये क्यूँ नई कि ग़लत करने वालो से कभी मत डरना.बस कुछ इसी विषय पर आधारित है.. एक लड़की ..शर्मीली की ये कहानी..
शर्मीली, बहुत ही नटखट ,शरारती और जिद्दी पर मनमौजी सी लड़की थी .ना किसी का डर और ना किसी की परवाह बस अपनी दुनियां और सपनों में जीने वाली. जहाँ चाहा घूम लिया और जहाँ चाहा सो गये बेफिक्र और फिर तब की बात ही अलग थी ,यही सोचते हुए आज जवान शर्मीली अपने उन पुराने लम्हों में चली गई, जिसे सोच कर आज भी उसकी रूह काँप जाती हैं।बात उन दिनों की थी जब शर्मीली लगभग  12-13 साल की थी। उस समय बचपन आज से अलग और तकनीकी उपकरण से दूर ;दोस्तों और पड़ोसियों के साथ बिताया जाने वाला था। उसी समय कुछ दिनों पहले उसके पड़ोस में एक नया पड़ोसी आया था ; जो एक अधेड़ उम्र का आदमी था और जिसने उसका दिल चॉकलेट जेसी कई लुभावनी चीजें देकर जीत चुका था। आज उसके साथ वह भी खेल  के मैदान में आया और वहाँ भी उसे कई बार अपने पास बुलाने की कोशिश करने लगा शर्मीली थोड़ा शर्माते हुए उसके पास गई और फिर उस आदमी ने उसी वक्त मौके की नज़ाकत को समझते हुए शर्मीली को अपनी गोद में बैठा लिया; वह थोड़ा घबराई पर उसने ज़ोर से उसे अपने बाँहों में जकड़ लिया डरी हुई शर्मीली अब उतरने की कोशिश करने लगी पर पता ही नई चला कि कब उसका हाथ उस आदमी के उस स्थान पर स्पर्श कराया जाने लगा जिसे वह अब तक सिर्फ़ सु -सु करने का माध्यम समझती थी वह नादान सी लड़की अब बहुत डर गई थी समझ नई पा रही थी आख़िर क्या करुँ? पर इतना समझ गई थी कि ये बहुत गन्दी हरकत थी अब वह बस जल्दी भाग कर बाथरूम में जाकर साबुन से हाथों को रगड़- रगड़ कर धोने लगी इस उम्मीद से कि शायद ये गंदगी उसके हाथों के साथ मन से भी निकल जाएगी पर वह नादान क्या समझे कि यह गंदगी वह आदमी उसके मन में जीवन भर के लिए छोड़ गया है उस वक्त से शर्मीली आदमियों से ही नई बल्कि लड़कों से भी थोड़ा डरने लगी वक्त के साथ ये बात अब पुरानी होने लगी पर आज भी यह बात सिर्फ़ उसके मन तक ही सीमित थी क्योंकि उसे इस बात का डर था कि लोग क्या कहेंगे? और फिर माँ ;माँ तो डाँट ही पड़ेगी उन्हॊने पहले ही मुझे उनसे दूर रहने को कहा था पर बात यही ख़त्म नई होती...

अब शर्मीली यादों के उन पलों में थी जब उसका जिस्म एक नया आकार ले  रहा था। ख़ुश तो बहुत थी कि वह बड़ी हो रही है पर उसकी इस खुशी पर भी ग्रहण लग गया था तब ,जब पहली बार उसके जिस्म के उतार- चढ़ाव का भीड़ में मज़ाक उड़ाया गया और कई बार तो पब्लिक प्रॉपर्टी समझ कर छुआ भी गया और फिर ये सिर्फ़ एक बार नई कई बार हुआ कभी स्कूल तो ;कभी ट्रेन की भीड़ में ,कभी रास्ते पर चलते हुए तो; कभी किसी मन्दिर की धक्का मुक्की में.. फिर क्या ..अब तो इस भीड़ के सामने उस भगवान का डर भी फीका पड़ गया..और उसका लोगों से मिलना और भीड़ में निकलना अब कम हो गया बातें भी लोगों से पहले तो कम ही थी पर अब ना के बराबर हो गई. उम्र के साथ आज बहुत सी चीज़ें बदल गई थी लोग, ज़माना, सोच ,दिल, दिमाग़, जिंदगी और वह ख़ुद भी ये सोचते -सोचते वह यादों के उन लम्हों से बाहर आ गई और सोचने लगी "गुड टच एंड बेड टच" के बारे जो उसने अभी -अभी टीवी पर देखा बस तभी उसका मन भी चीख़ने को करने लगा कि ए गन्दी सोच के दरिंदो अब मैं तुम गन्दे लोगों से नई डरती और अब मैं भी सब को बताना चाहती हूँ कि किसी से मत डरो बल्कि डरा दो उन दरिंदो को जिन्होंने हमें डरपोक समझा है और ये भी की हम कुछ नई कर सकते और फिर ये डर ही तो है जो हमें कमज़ोर और डरपोक बनाता है तो क्यूँ ना हम इस डर को ही खत्म कर दे..।

ये कहानी सिर्फ़ शर्मीली की ही नई बल्कि उसकी तरह कई लड़की और लड़कों की भी है जो हर रोज़ इसका सामना करते हैं अपनी रोज़ मर्रा की जिंदगी में और मुझे लगता है : "बेड टच" बलात्कार की तरह ही एक घटिया अपराध है जिसका शिकार आज वो बच्चे भी हुए जिन्हें बलात्कार का 'ब' भी नई मालूम है पर इन से डर कर हम अपनी जिन्दगी  बेफिक्र होकर जीना तो नई छोड़ सकते तो क्यूँ ना इसका डट कर सामना करना सीखे पर इसके लिए जरूरत है ऐसे इनसानों की जो अपने बच्चों को बच्चा समझ कर नई; बल्कि दोस्त समझ कर समय के साथ बदलते समाज से रूबरू करा कर सिखाए और थोड़ा टाइम बच्चों के लिए जरूर दे ये जानने के लिए कि आज दिन भर उन ने क्या किय़ा ..? और उनके साथ क्या अच्छा या बुरा हुआ ..? क्योंकि एक सही निर्देशन के साथ जो अनुभव और सलाह आप अपने बच्चों को दे सकते है वो कोई और नई.. शायद मॉडर्न ज़माने का मीडिया भी नई दे सकता।


तारीख: 08.04.2018                                    मीनाक्षी सिलोरिया









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