चीनी विरह कविता

 

मैं हूँ यांगत्से की आदि १
यांगत्से का तू अंत पिया


रोज तड़पूँ मैं दीदार बिना 
पीते दोनों एक ही पनिया 


हाए ये पानी कब थमेगा 
हाए ये दर्द कब मिटेगा


हो तेरा दिल भी मुझसा 
ऐ पिया न होना बेवफ़ा


कवि: ली चीई (समय काल: दसवीं-ग्यारहवीं सदी) ; अनुवाद:इरफान अहमद, व्याख्याता, चीनी विभाग, सिक्किम केन्द्रीय  विश्वविद्यालय; १ यांगत्से: नदी का नाम


तारीख: 20.03.2018                                    इरफ़ान अहमद









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