फ़लसफ़े से बेलों की तरह लिपटी यादें

फ़लसफ़े से बेलों की तरह लिपटी यादें,
सपनो में भी काफ़िर मुंतसिर न हो सका

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यादें कहां कहां ले जाती हैं,
सफ़र लाश की तरह क्यों गुज़ारें,
कफ़न एक बार ही ओड़ना मुसाफ़िर,
सर्दी के बाद, हल्की सी हरियाली हर मोड़ पर रोक देती है


तारीख: 20.06.2017                                    मनोज कोहली









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