खुद ही से वाकिफ नहीं हुआ हूं कई रोज से
आजकल मुझे कोई मयखाना जो नसीब न हुआ
बीतती हुई उम्र इशारा कर गई पैगाम देकर
साकी सा मेहरबां तेरे साथ कोई शरीक न हुआ
चेहरे पे मासूमियत का हवाला दे हमदर्दी जता गए
मेरी बिखरी ख्वाबों की माला चुनने कोई करीब न हुआ
तकाजा भी क्या करें अब उन नामुक्कमल हसरतों का
जिनकी चाह में आजतक भी ललित खुशनसीब न हुआ