बेवकूफी का सौन्दर्य

सोशल मीडिया पर फुर्सत से 'फुरसतिया ब्लाग' लिखने वाले अनूप शुक्ल से कौन परिचित नहीं है. हाल ही में उनका हास्य व्यंग्य संग्रह ' बेवकूफी का सौन्दर्य' पढ़ने का मौका मिला.पढ़ने बैठे तो एक ही बार में पढ़ डाला.यह संग्रह पठनीयता की कसौटी पर खरा उतरता है.सहज , सरल और आसान भाषा या यूँ कहें कि आम बोलचाल की भाषा में हास्यपूर्ण और चुटीले व्यंग्य आगे पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं.जहाँ एक तरफ गम्भीर से गम्भीर मुद्दे नश्तर की तरह अपना काम करते है वही हलके फुल्के विषयों में भी हास्य अपना रंग बिखेर देता है .

Bewkoofi ka saundarya
हिन्दी वर्णमाला में छोटी इ और बड़ी ई की बेबाक भूमिका का उदाहरण शब्दों के निर्माण में बखूबी किया .'दल' जैसे दबंग शब्द को इ ई की शरारतों से 'दिल', 'दिल्लगी' 'दिल्ली' तक की राजनीति तक की खबर 'छोटी ई , बड़ी ई और वर्णमाला' में लेते हैं, वहीं दूसरी तरफ इन्हीं स्वरों के माध्यम से समाज में व्याप्त लिंगानुपात पर भी चिकोटी भरते नजर आते हैं-
"पूरी वर्णमाला में मेरे और तेरे और 'ञ' के अलावा और कोई स्त्रीलिंग नहीं है. .... क्या पता खूब सारे स्त्रीलिंग शब्द रहे हों लेकिन उनको मिटा दिया गया हो जिस तरह आज लड़कियों की संख्या कम होती जा रही है. क्या पता वर्णमाला का निर्धारण भी किसी मर्दानी सोच वाले ने किया हो स्त्रीलिंग ध्वनियों को अनारकली की तरह इतिहास में दफन कर दिया हो."
इसी तरह देश में हो रहे घोटालों को खत्म करने के लिए एक अनोखी स्कीम बतायी है - "जिस तरह डॉक्टरों को नॉन प्रेक्टिस अलाउंस मिलता है उसी तरह तर्ज पर खेलों में फिक्सिंग रोकने के लिए खिलाड़ियों को नॉन फिक्सिंग अलाउंस मिलना चाहिए..हो सकता है खेलों की नॉन फिक्सिंग अलाउंस स्कीम आगे चलकर दूसरे पेशों में भी लागू हो. सरकार हर विभाग के लिए ,हर मंत्री के लिए,हर पद के लिए उसकी घोटाला क्षमता के अनुसार नॉन घोटाला अलाउंस घोषित कर दे."

'बेवकूफी का सौन्दर्य' मनमानी, तानाशाही और मठाधीशी की क्लास लगाता है.वहीं 'ऑन लाइन कविता स्कूल' शृंगार रस की सजावट, बनावट और दिखावट को खूबसूरती से पेश करता है.एक तरफ 'जिन्दगी धूप तुम घना साया' जिन्दगी के आंगन में झाँकने की कोशिश करता है.वही 'क्रिकेट में चीयरबालाएं' क्रिकेट के पागलपन को बहुत ही हलके फुल्के अंदाज में उकेरा गया है.


'भारत एक मीटिंग प्रधान देश है' एक सरोकारी भाव-भंगिमा वाला व्यंग्य है जो कई जगह अपने पंच से व्यवस्था पर चोट करता है. "...भारत एक कृषि प्रधान देश है जहाँ मीटिंगों की खेती होती है."'चुनाव घोषणा पत्र में च्यवनप्राश' राजनीतिक पार्टियों की खोखली, दोगली स्कीमों के दावपेंच को बड़ी ही चंचलता से दर्शाया गया है.


शुक्ल जी अपने व्यंग्य के माध्यम से मनुष्य के मनोविज्ञान के साथ साथ उसके आस पास के परिवेश को जीवंत करके पाठकों के सामने प्रस्तुत करने में खूब माहिर हैं.साथ ही अमूर्त विषय को जीवंत करने की कला इनके व्यंग्यों के जरिये सीखी जा सकती है .

बेवकूफी का सौन्दर्य: अनूप शुक्ल | रुझान प्रकाशन | कीमत 150 रुपये


तारीख: 19.06.2017                                    आरिफा एविस









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