यूपी और बिहार के लगभग हर लड़के का सपना होता है आई.ए.एस बनने का। इस कहानी का एक पात्र संतोष भी यही सपना लिए भागलपुर से दिल्ली के मुखर्जी नगर आता है। वहाँ उसकी मुलाकात रायसाहब से होती है जो उसका सबसे पहला परिचय मुखर्जी नगर में रह कर आई.ए.एस की तैयारी कर रहे लड़कों और उनकी जिंदगी से करवाते हैं।
उसके बाद वो और कई लड़कों जैसे गुरु, भरत, मनोहर, विमलेंदू आदी के संपर्क में भी आता है जिनकी कहानी बीच-बीच में लेखक बताता रहता है। इंजीनियरिंग कालेज की जिंदगी पर तो बहुत सी किताबें लिखी गई हैं पर आई.ए.एस बनने से पहले का संघर्ष इतने करीब से दिखाती शायद यह पहली किताब होगी। हर समय आप इसके पात्रों और उनकी मनोदशा को महसूस करते हैं।
उनके साथ आपका एक संबंध बन जाता है जो आखिर तक कायम रहता है। इसके साथ ही यह किताब कोचिंग सेंटर द्वारा लड़कों को ठगने की प्रक्रिया के बारे में कुछ बात करती है। इसकी कहानी में बहुत अधिक घटनाऐं नहीं हैं पर जो हैं उनका विवरण विस्तार से किया गया है। लेखक पात्रों की भाषा के बारे में पहले ही आगाह कर देता है इसलिए आप सचेत रहते हैं।
अंत तक जाते-जाते लेखक ने बहुत ही बेहतरीन ढंग से आई.ए.एस में ना चुने जाने पर होने वाली कुंठा, अवसाद और घर के सदस्यों का दबाव दर्शाया है। अब इतने सारे पात्रों में कौन आई.ए.एस बनेगा और कौन नहीं यह तो आपको किताब पढ़ कर ही मालूम होगा पर इसे पढ़िये जरूर।
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