आस की डोर

दिल के धागे 
दिल से बंधे
टूटते जा रहे हैं 
पेड़ के तने से बांधु
या खिड़की से झांकते
चांद की कलाई पर 
कहां बांधु 
अपनी आस की डोर जो 
सांस आ जाये
जाती हुई सांस को 
धागों के जोड़ अब
और तोड़ मत खुद को 
आकर बंध जा मेरी 
रिश्तों की उधड़ी हुई 
सिलाई से।


तारीख: 06.02.2024                                    मीनल









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है