चिर हरण

छल में कपटी अर्जुन का भी ऐसा कम है नाम नहीं।

गुरु द्रोण का कृपा पात्र बनना था उसका काम वहीं।

मन में उसके क्या था उसके ये दुर्योधन तो जाने ना,

पर इतना भी मूर्ख नहीं चित्त के अंतर  पहचाने ना।

 

हे मित्र कहो ये न्याय कहाँ  उस अर्जुन के कारण हीं,

एक्लव्य  अंगूठा  बलि  चढ़ा  ना  कोई  अकारण हीं।

सोंचो गुरुवर ने पाप किया क्यों खुद को बदनाम किया ,

जो सूरज जैसा उज्ज्वल हो फिर क्यों ऐसा अंजाम लिया?

 

ये अर्जुन का था किया धरा  उसके मन में था जो  संशय,

गुरु ने खुद पे लिया दाग ताकि अर्जुन चित्त रहे अभय।

फिर निज महल में बुला बुला अंधे का बेटा कहती  थी  ,

जो क्रोध अगन में जला बढ़ा उसपे घी  वर्षा करती  थी।

 

मैं  चिर अग्नि  में जला  बढ़ा क्या  श्यामा को ज्ञान नहीं ,

छोड़ो  ऐसे भी कोई भाभी  करती क्या अपमान कहीं?

श्यामा का  जो  चिर  हरण था वो कारण जग जाहिर है,

मृदु हास्य का खेल नहीं अपमान फलित डग बाहिर है।


तारीख: 12.03.2024                                    अजय अमिताभ सुमन




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