खाता है वह सब
जो भीड़ नहीं खाती
खा लेते कुछ भी
पर इंसान का ग्रास...आदमखोर
इन प्रेतों की बढ़ती झुंड आपके
पास आएगी।
आज इस वज़ह से
कल उस वज़ह से
निशाना सिर्फ इंसान होंगे
जो जन्म से मिला
कुछ भी नहीं तुम्हारा
फिर इस चीजों पर
इतना बवाल!
इतना उबाल!
और फिर ऐसा फसाद ?
आज अल्पसंख्यक सोच को कुचला है,
कल अल्पसंख्यक जाति,परसो धर्म,
फिर रंग,कद,काठी,लिंग वालों को,
फिर उन गांव, शहर,देश के लोगों को जिनकी संख्या
भीड़ में कम होगी।
किसी एक समय में
किसी एक जगह पर
हर कोई उस भीड़ में होगा अल्पसंख्यक
और भीड़ की लपलपाती हाथें तलाशेंगी
सबका गला, सबकी रीढ़ और सबकी पसलियां।
पहले से ही वीभत्स है
बहुसंख्यकों का खूनी इतिहास।
अल्पसंख्यकता सापेक्षिक है
याद रहा नहीं किसी को।
असभ्यों की भीड़ से एक को चुनकर
सभ्यों की जमात में खड़ा कर दो
और पूछो तुम्हारा स्टेटस क्या है?