ना मुझमें सुंदरता है,
ना मुझमें कोई आकर्षण हैं।
हाँ मैं तुम जैसी नहीं पर,
मेरी प्रतिभा ही मेरा दर्पण हैं।।
वाक्य चातुर्य से परे हूँ मैं ,
चुप रहना ही मैने सीखा हैं।
नहीं लोभ मुझे बाहरी आवरणों का,
मेरा अंतर्मन ही मेरी सीमा हैं।
हाँ मैं तुम जैसी नहीं पर,
सादगी ही मेरा गहना हैं।।
ना मुझमें चतुरता हैं ,
ना मुझमें अधिक ज्ञान हैं।
ना मुझमें माया का लोभ हैं ,
मेरा धन तो मेरा स्वाभिमान हैं।
हाँ मैं तुम जैसी नहीं पर,
खुद पे मुझे अभिमान हैं।।
महत्ता की भूख नहीं हैं मुझे,
भूख तो मुझे सिर्फ स्नेह की हैं।
आडंबर का आवरण क्यों ओढ़ू जब,
अभिलाषा मुझे मौलिकता हैं।
हूँ तो मैं तुम जैसी ही पर,
अंतर सिर्फ मानसिकता की हैं।।