आजादी का अर्थ स्वतन्त्रता नही! अपितु स्वाधीनता हैं!

आजादी का मतलब स्वतन्त्रता नही अपितु स्वाधीनता हैं। इस बात को हमें भावी पीढ़ी को स्पष्ट रुप से समझाना होगा। हम भावी पीढ़ी को यह समझायें कि आज हम किसी के गुलाम नही हैं जिस अंग्रेजी हुकूमत के हम गुलाम थे वह देश छोड़कर चले गये हैं। अतः आज हम अंग्रेजों पर निर्भर नही हैं बल्कि अपने ऊपर निर्भर हैं। आज हम अंग्रेजों के अधीन नही है बल्कि स्वाधीन हैं अर्थात अपने अधीन हैं।

आज हमें आत्मनिर्भर बनना है। यह बात हमने अपनी भावी पीढ़ी को नही समझाई हैं अतः भावी पीढ़ी ने ‘‘इन्डिपेन्डेंस डे’’ का मतलब फ्रीडम डे और ‘‘स्वाधीनता दिवस’’ का मतलब स्वतन्त्रता दिवस समझ लिया हैं और यह मान लिया है कि चूंकि आज हम स्वतन्त्र हैं अतः अब हमें कुछ नही करना है तथा अब हमें किसी के भी अधीन रहने की आवश्यकता नही हंै। इसलिये आज हमारी भावी पीढ़ी! माता-पिता, विद्यालय, समाज, कानून और प्रशासन किसी के प्रति उत्तरदायी नही हैं। चारो तरफ अशान्ति है, जिसकी लाठी उसकी भैंस वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। आजादी के इस अर्थ का अनर्थ हमारी जो यह भावी पीढ़ी कर रही है यह हमारे नैतिक, चारित्रिक पतन की जीती जागती एक मिसाल हैं।

अगर समाज की यही स्थिति रही और युवा पीढ़ी को हमने आजादी का सही अर्थ न समझाया तो समाज का एक ऐसा विकृत चेहरा हमारे समक्ष उपस्थित हो जायेगा जिसकी हम कल्पना भी नही कर सकते हैं। तब हम अपनी गलती पर गला फाड़-फाड़ कर रोयेंगे तब ऊपर बैठे हमारे पितामह हमारी यह दुर्दशा देखकर दुखी हो रहे होंगे और कह रहे होंगे कि क्या हम तुम्हें विरासत में आजादी इसलिये ही देकर आये थे? कि तुम भावी पीढ़ी को स्वतन्त्रा का अर्थ भी न समझा सको। लानत है तुम जैसी संतानों पर! जो कि अपनी संतानों को अपने पूर्वजों के खून-पसीने द्वारा अर्जित आजादी की कीमत भी न समझा पाये। तुम अपने पूर्वजों के त्याग-तपस्या, बलिदान, कुर्बानी को भी भूल गये। और इसका एहसास भी अपनी संतानों को नही करा पाये!  यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं कि इन प्रश्नों का उत्तर स्वर्ग में बैठे हमारे पूर्वज हमसे चाहते हैं अतः आज हमें पूर्वजों के प्रश्नों का उत्तर देना होगा इसके लिए हमें अपने पूर्वजों के प्रश्नों पर गहन चिन्तन व मनन करना होगा तभी स्वतन्त्रता का सही अर्थ हम अपनी भावी पीढ़ी को समझा सकते हैं।

तभी हम न्याय कर सकेंगे अपने पूर्वजों के साथ और अपनी भावी पीढी के साथ।
आज हमें इस अपनी भावी पीढ़ी को आजादी का सही अर्थ समझाना होगा उनको यह बताना होगा कि आपको यह आजादी हैं कि आप मन्दिर, मस्ज़िद, गिरज़ा, गुरुद्वारे का निर्माण करें किन्तु आपको यह छूट नहीं हैं आप इन पवित्र स्थलों को नुकसान पहुँचायें, आपको जीने की आजादी हैं किन्तु आपको किसी के प्राण लेने की आजादी नही हैं, आपको यह आजादी है कि आप किसी भी धर्म में अपनी आस्था रखें किन्तु आपको यह आजादी नही है कि अन्य धर्मावलम्बियों का अहित करें आपको पढ़ने लिखने ऊँचें पद पर पहुँचने की पूर्ण आजादी हैं किन्तु आपको यह आजादी नही है कि आप दूसरे को उस पद पर पहुँचने में बाधा उत्पन्न करें। आजादी का अर्थ यह नहीं है कि आप टेªन पर कब्जा कर लें, बिजलीघर तोड़ डालें, कल कारखानों को नुकसान पहुँचायें, सड़क पर किसी को चलने ही न दें स्कूल कालेजों में कमजोर साथियों को सतायें उनका अपमान करें, माता पिता व शिक्षक की बात न मानें अब चाहें स्कूल व घर आ जाय जब चाहें तब स्कूल व घर से चले जाय हमारे ऊपर किसी का अंकुश ही नही होना चाहिये। आजादी का यह अर्थ नही है मेरे दोस्त! यह केवल उदंडता हैं साथ ही आजादी के अर्थ का अनर्थ हैं और आजादी का अपमान है।

लेकिन आज की भावी पीढ़ी स्वतन्त्रता का अर्थ कुछ इसी तरह निकाल रही हैं। लेकिन इसके लिए केवल यह भावी पीढ़ी ही दोषी नही हैं, इसके लिए हम और आप दोनों भी दोषी हैं। हमने कभी इस भावी पीढ़ी को स्वतन्त्रता  का अर्थ समझाया ही नही है कि स्वतन्त्रता का क्या अर्थ हैं? इस अर्थ को समझाने के लिए हमें इस भावी पीढ़ी को तीन प्रश्नों के उत्तर को समझाना होगा। स्वतन्त्रता की परिभाषा क्या है? स्वतन्त्रता का महत्व क्या हैं? स्वतन्त्रता को कैसे पुष्पित पल्लवित करना हैं? जब तक इन तीन प्रश्नों का उत्तर भावी पीढ़ी को नही देते हैं तब तक हम अन्याय कर रहे हैं इस भावी पीढ़ी के साथ एवं अपनी उस पीढ़ी के साथ भी जो अपने प्राणों को न्योछावर कर हमें विरासत में ‘‘स्वतन्त्रता’’ दे गये हैं।


(1) स्वतन्त्रता की परिभाषा क्या हैं?:- अनेक विद्वानों ने स्वतन्त्रता की परिभाषायें अपने-अपने मतानुसार दी है। किन्तु स्वतन्त्रता की यह सभी परिभाषायें संवैधानिक हैं स्वतन्त्रता की व्यवहारिक परिभाषा यह है कि ‘‘हमें पूर्ण स्वतन्त्रता के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करने की आजादी हो’’ इन कर्तव्यों के पालन में किसी प्रकार का व्यवधान नही होना चाहिए। हम कर्तव्यों का पालन अपने माता-पिता केे साथ करें, अपनी मातृभूमि के साथ करें सम्पूर्ण मानवता के साथ करें, सम्पूर्ण जीव जन्तुओं व पशु पक्षियों, पेड़ पौधों के साथ करें। स्वतन्त्रता का अर्थ यह नही है कि हम स्वतन्त्र हैं तो हम पेड़ पौधों को उजाड़ देंगे जीव जन्तुओं को मार डालेंगे, मानवता के साथ मनमानी करंेगे, माता पिता की बात नही मानेंगे सामाजिक मान्यताओं को नकार देंगे हम स्वतन्त्र हैं  इसलिए जब चाहेंगे घर आयेंगे हमसे कोई पूछ नही सकता हैं क्यों हम देर से आये हैं वह इसलिए कि हम स्वतन्त्र हैं बस! यही सोच स्वतन्त्रता के अर्थ का अनर्थ कर रही हैं इस अनर्थ से युवाओं को केवल माता-पिता और विद्यालय ही बचा सकते हैं और कोई नही। इसलिये यह जिम्मेदारी मेरी और आपकी दोनो की हैं क्योंकि मैं शिक्षक हूँ और आप माता पिता। अतः स्वतन्त्रता का सही अर्थ भावी पीढ़ी को समझाइये साथ ही भावी पीढ़ी को इस अनर्थ से बचाकर सही रुप में उन महान आत्माओं को श्रृद्धान्जलि दीजिये जो अपने प्राणों की आहुति देकर हमें इस स्वतन्त्रता को विरासत में दे गये हैं। 


(2) स्वतन्त्रता का महत्वः- जब तक हम बच्चों को स्वतन्त्रता की कीमत का एहसास नही करायेंगे कि आज आप स्वतन्त्रता की जो साँस ले रहे हैं इस साँस को लेने के लिए हमारे हजारो और लाखों पूर्वजों ने अपनी साँसों की बलि चढ़ाई हैं। तब जाकर यह जाकर स्वतन्त्रता हमें प्राप्त हुई हैं। यह स्वतन्त्रता हमें मुफ्त में नही मिली हैं इसकी बड़ी कीमत चुकाई हैं, हमारे पूर्वजों ने। कितने घर उजड़े है, कितनी बहनो, बेटियों की मांग सूनी हुई है, कितनी माताओं की गोद खाली हुई है तब जाकर हम इस स्वतन्त्रता की साँस ले रहे हैं। इस एक-एक साँस की कीमत हमारे पूर्वजों ने अपनी जान की बाजी चुकाकर लगायी है। अब क्या हम इस बेसकीमती स्वतन्त्रता को इतने हल्के पन से लेलें। अगर इतने हल्केपन से लेते भी हैं तो इसके परिणाम गंभीर होंगे जिनकी हम कल्पना भी नही कर सकते हैं अतः अभी समय है जग जाइये। ‘‘जब जागो तभी सवेरा’’ जगकर इस भावी पीढ़ी को स्वतन्त्रता के महत्व को समझाइये कि यह स्वतन्त्रता कितने त्याग व तपस्या से प्राप्त हुई। क्या महत्व है उस महत्व को भली भांति इस भावी पीढ़ी को समझाइये तभी हम अपने कर्तव्य का सही मायने में निर्वाह कर रहे हैं अन्यथा नही।


(3) स्वतन्त्रता को कैसे पुष्पित पल्लवित करेंः- हमें स्वतन्त्रता तो विरासत में मिल गयी किन्तु हमने  इस स्वतन्त्रता को पुष्पित पल्लवित न किया तो इस आजादी का कोई मतलब नही रह जायेगा यह हमारी नैतिक जिम्मेदारी है कि सर्वप्रथम तो हम इस आजादी की रक्षा करें यदि इसके रक्षार्थ हमें अपने प्राणों की आहुति भी देनी पड़े तो हंस-हंस कर न्योछावर हो जायें इस मातृभूमि पर।
स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार हैं इस अधिकार को तो हम समझें साथ ही यह भी समझें कि हमारे कर्तव्य क्या हैं? वह इसलिए कि अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे के पूरक हैं। कर्तव्य पूरा किये बिना अधिकारों की प्राप्ति सम्भव नही हैं। यदि हम चाहते हैं कि हमारी आजादी का कोई हनन न करे तो यह हमारा कर्तव्य भी है कि हम किसी भी व्यक्ति की स्वतन्त्रता में बाधक न बनें। उदाहरण स्वरुप हमें सड़क पर चलने की स्वतन्त्रता है लेकिन हम पूरी सड़क घेर कर चल रहे हैं  तो इससे दूसरे व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन निश्चित रुप से हो रहा हैं। हमें यह आजादी है कि हम ट्रेन में सफर करें किन्तु अपना सामान दूसरे की सीट पर रखकर उस व्यक्ति की स्वतन्त्रता का हनन न करें।

हमें मन्दिर में पूजा करने की पूरी स्वतन्त्रता हैं किन्तु हम इतने फैल कर न बैठें कि दूसरे व्यक्ति को जगह ही न मिले बैठने के लिए। यह दो चार उदाहरण भर हैं आपको समझाने के लिए, कहने का आशय यह है कि हम ऐसा कोई भी कार्य न करें जिससे कि दूसरे की स्वतन्त्रता में बाधा उत्पन्न न हो जिस प्रकार हमें जीने की स्वतन्त्रता है यह स्वतन्त्रता दूसरे को भी अतः जीओ और जीने दो की सोच ही स्वतन्त्रता की सही परिभाषा हैं। आज इसी परिभाषा को अमल में लाना है तभी स्वतन्त्रता पुष्पित व पल्लवित हो सकेगी। 


हमारी यह भी नैतिक जिम्मेदारी है कि हम यह भी देखें कि अभी समाज किन-किन गुलामी की जंजीरों से जकड़ा हुआ हैं हमारा समाज आज भी गुलाम है जाति पाति का, धार्मिक संर्कीणता का अशिक्षा, गरीबी, बीमारी, लाचारी, क्षेत्रीयता व संकुचित राष्ट्रीयता का। इन गुलामी की जंजीरों को हमें तोड़ना होगा। हमें भावी पीढ़ी को यह एहसास भी कराना होगा कि जब तक हम समाज को इन बुराइयों की जंजीरों से मुक्त नही करा देते हैं जब तक हम प्रत्येक नागरिक को रोटी कपड़ा मकान नही दे देते हैं जब तक बिजली औरपानी मुहैया नही करा देते तब तक इस आजादी का कोई अर्थ नही हैं। अतः हमें समाज में पूर्ण रुप से स्वतन्त्रता का एकसास कराने के लिए इन सब अभावों व बन्धनों से समाज को मुक्त करना होगा तब हम स्वतन्त्रता के इस सही अर्थ को समझायेंगे।


एक बात और कान खोलकर सुन लीजिये अगर हमने भावी पीढ़ी को इस अनर्थ से न बचाया और इस भावी पीढ़ी को स्वतन्त्रता का सही स्वरुप उसकी महत्ता एवं अपने कर्तव्यों के प्रति जागरुक न किया तब हम अपने उद्देश्य में फेल हो रहे हैं। इसके लिए न तो हमें भावी पीढ़ी ही माफ करेगी और न ही हमारे पूर्वज हमको माफ करेंगे। वह इसलिए कि हमारे पूर्वज विरासत में आजादी देते हुए हमें यह संदेश भी दे गये हैं- हम लाये है तुफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के। यदि हम अपने इन महान पूर्वजों के निर्देशों का पालन सही ढंग से नही करते हैं और विरासत में मिली इस कश्ती को भंयकर तूफान से नही बचाते हैं तो हमसे बड़ा अपराधी और कोई नही हैं। यदि इस जघन्य अपराध के लिए हमारे पूर्वजों और इस भावी पीढ़ी ने माफ कर भी दिया तो ईश्वर, खुदा हमको माफ नही करेगा।

आइये इस अपराध बोध से बचें और आज के दिन इस पावन पर्व पर प्रतिज्ञा करें कि हम अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भावी पीढ़ी का सही मार्गदर्शन करेंगे साथ ही भावी पीढ़ी को आपसी प्रेम, भाईचारा, सर्व-धर्म समानत्व से इस आजादी को पुष्पित पल्लवित करेंगे। समाज में अमन-चैन व शान्ति का साम्राज्य स्थापित करेंगे। आज की यह प्रतिज्ञा ही हमारी सच्ची श्रृद्धांजलि है उन अमर शहीदों के लिए। जो अमर शहीद हमें विरासत में आजादी देकर हमसे दूर चले गये हैं और आज हम उन्हीं बलिदानियों की बदौलत ही स्वतन्त्रता की साँस ले रहे हैं। 


मैं इस पुनीत अवसर पर निम्न गीत के माध्यम से भावी पीढ़ी को यह संदेश भी दे रहा हूँ-
    संग्राम जिन्दगी है, लड़ना ही पड़ेगा।
     जो लड़ नही सकेगा, आगे नही बढ़ेगा।।
    घेरा समाज को है, भीषण कुरीतियों ने
    व्यसनों ने रुढ़ियों ने, निर्मम अनीतियों ने
    इन चुनौतियों से, कौन है जो भिडे़गा।
    जो लड़ नही सकेगा, आगे नहीं बढ़ेगा।।
    चिन्तन चरित्र में अब, विकृति बढ़ी हुई है
    चहुँ और कौरवों की सेना खड़ी हुई है
    क्या पार्थ! अब भी भ्रम में पड़ा रहेगा
    जो लड़ नही सकेगा, आगे नहीं बढ़ेगा।।
    आओ लड़ें स्वयं से, दोषों से, दुर्गणो से।
    मुक्त करें समाज को, धार्मिक उन्माद से।।
    जाँति-पाँति के तोड़े बन्धन, तभी यह देश बचेगा।
    तभी समाज बचेगा, और तभी विश्व बचेगा।।


तारीख: 07.04.2020                                    पंडित हरि ओम शर्मा हरि 









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