टेंशन-एक फैशन

आजकल फ़िज़ूल ही कोई ना कोई टेंशन लेकर खुद को दुखी और परेशान दिखाने का फैशन जोर-शोर पर है। जो असल में परेशां है , उसका दुखी होना तो लाज़मी है लेकिन ऐसे महानुभावो की भी कमी नहीं है , जो किसी फ़िज़ूल की बात की बड़ी तबियत से खातिरदारी करके , उस पर एक बड़ी विकराल समस्या का बोर्ड लगा के , और उसे अपने बोझिल काँधे पर बड़े शौख से बिठा के , आपके निकट आते है और सत्तर कोने का मुँह बनाकर कहते है की  " अमां मियां बड़ा कष्ट है ज़िन्दगी में "  ऐसे विरले प्राणियो को आपको टॉर्च लेकर खोजने की जरूरत नहीं है ... हर कॉलोनी में ऐसे दुखीराम , गुमसुम मियां , और देवदास टाइप लोग किसी न किसी नुक्कड़ पे अपनी बेरंग , बेमजा ज़िन्दगी का रोना रोते हुए मिल ही जायंगे।
             

जिसके पास कोई टेंशन नहीं , उसे इस बात की टेंशन है कि उसके पास कोई टेंशन नहीं है। जो व्यस्त है वो आराम चाहता है और जो खाली है वो अपने खालीपन से परेशान है। मोटा आदमी अपने मोटापे से परेशान है तो दूसरी ऒर दुबला आदमी अपने दुबलेपन से । कोई अपने घर परिवार , नाते रिश्तेदारो से खुश नहीं है और जो सबसे खुश है वो अपनेआप से दुखी है। वैसे आजकल सामान्य और सुखी जीवन के दर्शन असल जिंदगी में तो होते नहीं ,  फिर भी भूले भटके अगर कभी किस्मत मेहरबान हो भी जाय तो  हम उसे किसी न किसी तरह उलझा ही देते है। शायद सीधी- साधी , सामान्य चीजो में हमें मजा नहीं आता है।
             

जब से ये मुईं फेसबुक नाम की बला इजाद हुई है न तब से दिखावे की एक नई कला जोर - शोर से चलन में आयी है... अक्सर अपने न्यूज़ फीड्स को आगे बढ़ाते हुए एक मनहूस सा पोस्ट अपनी मनहूस सी शक्ल लेकर आपके सामने अवतरित होता है कि " फलाने is feeling upset " ये देखकर उनके हैरान - परेशान मित्रगण बड़ी गर्माहट के साथ पूछते है कि " भाई क्या हुआ? क्यों परेशान हो  " उसके 5 - 6 घंटे बाद वही घिसा - पीटा , हज़ारो बार इस्तेमाल किया हुआ उत्तर चुपके से दबे पावं आता है जिसकी मुझे बेतहाशा उम्मीद थी कि " कुछ नहीं... बस ऐसे ही " अरे जनाब बतायंगे भी क्या ?.. जब उन्हें खुद अपनी उदासी का कारण नहीं पता। इतना ही नहीं इन महानुभाव के जहरीले पोस्ट आगे भी आपको परेशान करने के लिए अपना काम करते  रहते है... जैसे- Not satisfied with myself , Trying to be happy , Not happy with myself , इत्यादि... इत्यादि ... हद है भाई... ये खुद के इतने बड़े दुश्मन होते हैँ कि पाय तो दिन में कइयो बार खुद का ही खून कर दे। 
           

अंत में एक छोटा सा सन्देश इन महानुभावो के लिए कि " आधे घंटे देर से उठने के कारण अपनी सुबह की सैर न कर पाने वाला यह नहीं जानता कि जिस सैर को न कर पाने के कारण वह पुरे दिन तनाव में रहा , वह इतना फायदा नहीं करती... जितना पुरे दिन तनाव में रहकर उसने अपना नुक्सान किया है। "


तारीख: 03.11.2017                                    शुभम सूफ़ियाना









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