हाँ देखा है किसी मानस को एक बूंद पानी और एक दाने अनाज के लिऐ तरसते देखा है।
हाँ राँतो को भूखे बच्चो को चुप कराती उसकी माँ को उससे अधिक रोते देखा है।
हाँ राँतो को निंद मे उस गरीब के आँखो मे मृदूल सपनो का भंग चूर हो बिखरते देखा है।
हाँ वह माँ जब रात बड़ी अंधेरी सड़क किनारे बिस्तर लगाती गाड़ी देख के घबरा जाती, उसके मन का डर देखा है।
हाँ धरती पर हर एक मानस को दूसरे से जलते देखा है।
हाँ मन मे उठती क्रांति के रंग को जीवन का उमंग बनते देखा है।
हाँ बिखरे-बिखरे कुछ लम्हों को धीरे से बनते देखा है।