उल्फ़त भी तुमसे

उल्फ़त भी तुमसे मुहब्बत भी तुमसे
शिकवा भी तुमसे शिकायत भी तुमसे

हमराही भी तुम हो हमदर्द भी तुम हो
ख़ुशियों में तुम हो मुफ़लिसी में भी तुम हो

ख़ुशी बाँटू तुम से तो ग़म का कन्धा भी तुम हो
रिवायत भी तुम से रुहानियत भी तुमसे

सिफ़र से बन गए हो मेरी ज़िंदगी में तुम
कि बहार भी तुमसे और ख़िज़ा भी तुमसे


तारीख: 15.10.2017                                    विभा नरसिम्हन









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