पुस्तक समीक्षा- दि चिरकुट्स

कहते हैं कि कॉलेज में अपने दोस्तों के साथ बिताये पल (खासकर यदि आप हॉस्टल में रहे हों) ज़िन्दगी के सबसे यादगार क्षणों में होते हैं | हम सबके पास अपने कॉलेज के दिनों की यादें होती हैं | आलोक कुमार जी ने अपनी कुछ यादों  को एक अपन्यास की शक्ल दी है जिसका नाम उन्होंने रखा है “दि चिरकुट्स” |

हलाकि आलोक जी का कहना है कि ये कहानी चार दोस्तों की है जो कॉलेज के शुरुआती दिनों से साथ साथ रहते और समय बिताते थे| लेकिन मेरा मानना है कि इस उपन्यास में दो कहानियां है- पहली चार दोस्तों, उनकी दोस्ती, उनके struggles की और दूसरी एक लड़का और एक लड़की की प्रेम कहानी| ये दोनों कहानियां कभी कभी मिलती हुई एवं एक दूसरे को सहारा देते हुए तो कभी एक दूसरे के सामानांतर चलती हुई दिखाई देती हैं|

The Chrikuts kitab sameeksha

उपन्यास की शुरुआत दिल्ली के एक घर से होती है जहाँ उपन्यास के मुख्य पात्र अपनी पत्नी के साथ अपने घर जाने की तयारी में होते हैं| इसके बाद कहानी फ्लैशबैक में जाती है| कॉलेज के शुरुआती दिन, रैगिंग, असाइनमेंट्स, एग्जाम, प्लेसमेंट्स, प्यार, आदि तमाम चीज़ों का एक के बाद एक ज़िक्र आता है| कॉलेज के आखिरी साल में मुख्य ‘चिरकुट’ को प्यार हो जाता है एक ऐसी लड़की से जिससे उसके माँ बाप उसकी शादी करवाना चाहते हैं| कहानी में ट्विस्ट आता है, प्यार में खलल पड़ने वाली होती है लेकिन अपने मुख्य ‘चिरकुट’ बाकी 3 चिरकुट्स की मदद से स्थिति संभाल ही लेता है|

कहानी के बारे में ज्यादा बात न करते हुए ये बताना ज़रूरी है की कहानी बिलकुल नयी नहीं है| हाल के कुछ सालों में कॉलेज पर हिन्दी एवं अंग्रेज़ी में कई उपन्यास लिखे जा चुके हैं और अधिकतर उपन्यासों की तरह इस उपन्यास की कहानी में कुछ असाधारण बात नहीं है| हाँ ये ज़रूर है कि असाधारण न होते हुए भी कहानी पाठकों को बांधे रखने में सफल होती है| उपन्यास में कहीं कहीं ऐसा लगा कि कुछ ज़रूरी चीज़ों को जल्दी बाज़ी में लिख दिया गया है और कुछ ग़ैर-ज़रूरी किस्सों को कुछ अधिक खींच दिया गया है|

कहानी की एक अलग (और शायद अच्छी) बात है इसकी लव स्टोरी| ये कॉलेज में होने वाला आम प्यार नहीं है जिसमें पहले ही नज़रों में प्यार हो जाये, कैंटीन में अक्सर मिलना जुलना लगा रहे, एक कमरें में शिफ्ट हो जाएँ आदि | ये धीरे धीरे होने वाली, छोटे शहरों में दिखने वाली और मध्य वर्गीय परिवारों में पनपने वाली मोहब्बत है| यह प्यार चुम्बनों, आलिंगनों से लबालब नहीं है बल्कि एक दूसरे से शर्माने, छुप छुप के बातें करने और फिर एक दूसरे के सपने देखते रहने वाले भावों से सजा प्यार है|

कुल मिलाकर ये कहना उचित ही होगा कि ये एक अच्छा प्रयास है| सुधार की कई संभावनाएं हैं| कहानी साधारण ही है किन्तु नीरस नहीं| अपने दोस्तों एवं कॉलेज के दिनों को याद करना चाहते हैं या लेखक के प्रयास को सराहना चाहते हैं तो एक बार इस उपन्यास को पढ़ लें|


तारीख: 18.03.2018                                    साहित्य मंजरी









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