ऑफ लाइन और ऑन लाइन

इन्सान इस ज़मीं पर जब कदम रखता है, किस्मत अपनी हथेलियों पर लिखवा कर लाता है। लेकिन इतनी लाइनें तो गिन कर  भी उसके दोनों हाथों में नहीं होती जितनी तादाद में  वह  लाइनों में लगता है। यदि वह अस्पताल या आज के फैशन के मुताबिक वाया किसी नर्सिंग होम के तशरीफ लाया  है तो भी उसके जन्मदाता कहीं न कहीं लाइन मंे लगे जरुर लगे होंगे। जरा पांव पालने से बाहर किए तो मां बाप अपने  लख़्ते ज़िगर को  नर्सरी में एडमिशन दिलवाने के लिए एडवांस में किसी न किसी स्कूल में लाइन अप हो जाते हैं। कई दूरदर्शी मां बाप तो उसी दिन स्कूल में भागते देखे गए, जिस दिन डाक्टर ने सिर्फ इतना बताया -   ‘ मुबारक हो आप बाप बनने वाले हैं।
बस फिर बंदा आदि से अंत तक लाइनों के चक्रव्यूह मंे! नौकरी के लिए कभी सीधी तो कभी टेढ़ी मेढ़ी पंक्तियों मंे धक्के। बाद में बस या ट्र्ेनों में दफतर जाने के लिए क्तारबद्ध। एक बार तो दिवाली के वक्त बच्चों की गुल्लक तोड़ने के बाद और पत्नी द्वारा पति की जेबें साफ करने के बाद गुप्त खजानों से निकले नोटों को जमा कराने और बदलवाने के लिए बैंकंो में सुबह से शाम तक भूखे प्यासे, डंडे खाते हुए भी लाइन मंे जमे रहने की नोबत अचानक ,8 तारीख की रात ठीक 8 बजे  आ टपकी। और अगले दिन पूरा देश बिस्तर से सीधा बैंक के द्वार पर हाजिर।
अभी जुम्मा जुम्मा चार दिन भी नहीं बीते थे कि आपात काल की तरह कोरोना काल डिक्लेयर हो गया। हर बंदा ऑफ लाइन हो गया। यानी पटड़ी से ही उतर गया। मजदूर पटड़ी पटड़ी नंगे पैर एक लाइन में डंडा डोरिया उठा कर रेल लाइन के किनारे किनारे ,भागते भागते अपने घर पहंुच गए। अच्छे भले , खाते पीते घर के ,लंगरों की लाइनों में सारा सारा दिन फिट रहे।
 सरकार ने कहा कि भइया बहुत धक्के खा लिए । रोज रोज काम के लिए दौड़ते भागते रहे , बस अब जरा आराम से
घर बैठिए। वर्क फ्रॉम होम की आदत डालिए। बस लाइन लगानी है तो करियाने की दूकान के आगे लगाओ वह भी दो गज की दूरी पर। कोरोना ने सब का लाइफ स्टाईल बदल डाला। जो दारु का पव्वा घर बैठे मुंडू पकड़ा जाता था, उसके लिए लाइन में पुलिस के हत्थे चढ़े, डंडे पड़े ,नाक रगड़े, तेज धूप में सड़े, पसीने में कढ़े।
सरकार ने मोबाइल की  रिंग टोन ही बदल डाली । सुझाव दिया कि ऑन लाइन रहो ताकि पता चलता रहे कि जिंदगी ढर्रे पर कब आएगी। फिर पता चला कि अब हैं कोरोना टैस्टों की लाइनें। फिर हालत बिगड़ी तो किसी न किसी अस्पताल के आगे स्ट्र्ेचर पर अपनी बारी का इंतजार करते रहे। कुछ और बिगड़ी तो ऑक्सीजन के लिए ,एक अस्पताल से दूसरे, दूसरे से तीसरे लाइनें बदलते रहे। सीलबंद होकर , शमशान में लाइन में लग कर कई कई दिनों तक अपनी बारी का इंतजार किया। शोक सभा भी आन लाइन निपट  गई। यहां तक कि हैवी रश के कारण , चित्रगुप्त महाराज ने भी टोकन सिस्टम लागू कर दिया। जाओ लाइन में लगो । तुम्हारा टोकन नंबर है- 50 लाख , 65 हजार 2 सौे चालीस। पंाच साल बाद बारी आएगी तब तक इस इंटरनेशनल लाइन में चुपचाप बिना कोई नारे बाजी किए खड़े रहो। यमराज भी गरजे - ‘ये भू लोक नहीं ,यम लोक है। जो नियमों की अनदेखी पाता नजर आया , उसे सबसे आखीर में खड़ा कर दिया जाएगा।’ हमने भी गूगल पर विश्व का यह आंकड़ा चेक किया तो पाया कि वहां चित्रगुप्त जी को डाटा और आंकड़े  , गूगल से पूरी तरह मैच कर रहे हैं।
कुछ राहत मिली तो कभी कोवीशील्ड की ,कभी को -वैक्सीन की कभी स्पुतनिक की एक एक किलोमीटर की क्यू में फंसे।जरा वक्त बदला तो आस्मान से गिरे दिल्ली के चारों बार्डरों पर फंसे। राजधानी पहंुचने के लिए भी खेतों में वाहनों की लंबी लंबी कतारें। मौसम बदला है। सब कुछ ऑनलाइन हो गया है। दवा से लेकर दारु तक। पूजा पाठ से लेकर देवी देवताओं के दर्शन तक। चुनाव जीतने वाले नेता भी ऑन लाइन आभार प्रकट कर रहे हैं।  
कल ही एक विवाह का निमंत्रण पत्र ऑन लाइन मिला जिसमें शगुन भेजने की  सुविधा के लिए कार्ड पर ही ‘क्यू आर कोड’ छपा हुआ है। साथ ही  गूगल मीट पर शादी में शामिल होने के लिए कोड भी।
दुख भरे दिन बीते रे भईया ...... ऑन लाइन के दिन आयो रे......रंग जीवन में छायो रे.......


तारीख: 15.03.2024                                    मदन गुप्ता सपाटू









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