मुसाफिर ने शहर में एक दो लोगों से बात करने की कोशिश की मगर नाकामयाब रहा। सब बहुत जल्दी में थे और भागे जा रहे थे। उसे बुरा लगा।
मुसाफिर शहर में घूमता रहा। आखिरकार उसे एक व्यक्ति अपने मकान के बाहर चबूतरे पर एक प्लास्टिक की कुर्सी पर बैठा दिखा। मुसाफिर उसके पास गया और उससे पूछा, “क्या मैं यहाँ चबूतरे पर बैठ सकता हूँ ।”
उस व्यक्ति ने कहा, “बैठिये।”
मुसाफिर चुपचाप उसके पास चबूतरे के फर्श पर बैठ गया।
उस व्यक्ति ने मुसाफिर से कहा, “आप परदेसी मालूम होते हैं।”
मुसाफिर ने पूछा, “आपने कैसे अनुमान लगाया?”
वह व्यक्ति बोला, “पहनावे से, बोली से और व्यवहार से।”
फिर मुसाफिर ने उस व्यक्ति से कहा, “आप भी परदेसी मालूम पड़ते हैं।
“कैसे?” व्यक्ति ने पूछा।
“आपके व्यवहार से।” मुसाफिर ने जवाब दिया।
“आपने ठीक समझा। मैं गाँव से अपने बेटे से मिलने आया हूँ। ये मेरे बेटे का घर है।
मुसाफिर ने कहा, “मैं मुसाफिर हूँ। देशाटन पर निकला हूँ।”
मुसाफिर ने व्यक्ति से पूछा, “आपका बेटा क्या करता है?”
व्यक्ति ने कहा,”भागता फिरता है। असल में क्या करता है पता नहीं मिलेगा तो पूछूंगा। मुझसे से से कह के आया था काम पर जा रहा है।”
मुसाफिर ने आश्चर्य से पूछा, “अभी तक मिला नहीं।”
मैं कल ही आया हूँ। आज गुरुवार है। वह रविवार को मिलेगा।
मुसाफिर को उनलोगों से कोई शिकायत न रही जिन लोगों ने उससे बात नहीं की थी।
वह उठा और उस व्यक्ति से विदा लेकर फिर सफर पर निकल पड़ा।