मनीषा एक प्रतिभाशाली नवोदित लेखिका थी जो पत्र पत्रिकाओं में अपनी रचनाओं को छपवाकर अपनी रचनाधर्मिता को सावित करती रहती थी ।
एक दिन एक साहित्यिक पत्रिका में गुरु के महत्त्व पर कुछ पंक्तिया पढने के बाद उसे भी साहित्यिक गुरु बनाने कि धुन सवार हुई ।इस सिलसिले में एक पहुंचे हुए चोटी के साहित्यकार के पास जाकर मनीषा ने उनसे उसे शिष्या स्वीकार कर मार्गदर्शन का आग्रह किया ।
गुरूजी ने भी उसे सहयोग एवं मार्गदर्शन का पूरा आश्वासन दिया । प्रफ्फुलित मनीषा जैसे ही वापस लौटने के लिए मुड़ी तभी गुरूजी ने उसे आवाज देकर रोकते हुए कहा –“गुरु शिष्या परम्परा का निर्वाह बिना गुरु दक्षिणा के संभव नहीं ।
गुरु दक्षिणा से मेरा अभिप्राय तो समझ ही गयी होंगी ना तुम “गुरु की रहस्मय मुस्कान से अचंभित मनीषा जस की तस खड़ी रह गयी ।