मोहनलाल जी के घर में वर्षों से एक पुराना हारमोनियम पडा हुआ था ।जिसे घर का कोई सदस्य बजाना नहीं जानता था ।इस हारमोनियम को उनकी दादी बजाती थी ।मगर दादी अब रही नहीं सो अभागा हारमोनियम साल दर साल धूल की परतों में मुंह छिपाए टांड पर पड़ा रहता था ।
उनके बच्चों को टांड पर पड़ा यह हारमोनियम पुराना और घर की सुन्दरता में बाधक दीखता था अत:एक दिन बच्चों की जिद पर मोहनलालजी ने वह हारमोनियम कबाड़ी वाले मात्र सौ रुपये में बेच दिया ।जिसे उसी वक्त एक संगीत प्रेमी पडौसी ने चार सौ रुपये देकर खरीद लिया ।
मैंने कौतुहलवश उनके घर जाकर इस पुराने हारमोनियम को चौगुने दाम पर खरीदने की वजह पूछी ।तो उन्होंने बताया कि यह बहुत अच्छी क्वालटी का हारमोनियम है जो वर्तमान में हजारों रुपये का मिलता है ।फिर उन्होंने एक प्यारी सी ग़ज़ल की धुन उसपर निकली ।
फिर उन्होंने कहा”कई बार हम जिस चीज़ को पुराना समझ कर फैंक देते हैं वह दरअसल बहुत कीमती होती है मगर हम नासमझी में उसका मूल्य कम आंकते हैं “ऐसा कहकर उन्होंने मेरी तरफ व्यंग्य से देखा ।
कुछ महीनों पूर्व मैंने भी अपनी बूढी माँ का घर छोड़ दिया क्योंकि वह मेरी पत्नी को अपना अनुभव देने कि कोशिश करती थी जो पत्नी को पसंद नहीं था ।