"नैना! तुम्हारे मोबाइल पर 'नयनतारा अस्तपताल' से दो फ़ोन आये हैं. क्या हुआ? जहाँ तक मुझे मालूम है, ये आँखों का विशेष अस्तपताल है; तुम्हारी आँखों में कोई तकलीफ है क्या?" माँ ने उत्सुकतावश नैना से पूछा.
"नहीं माँ; कोई तकलीफ नहीं. एक मिनट... मैं फोन करके आई." और नैना दूसरे कमरे में फोन करने चली जाती है.
"हांजी, नयनतारा अस्तपताल... जी, आप 12बजे तक आ जाइये और जो भी ज़रूरी कागज़ात है; मुझे मैसेज कर दे, तब तक मैं सभी पपेर्स तैयार कर लेती हूँ." नैना; फ़ोन पर बात कर रही थी और उसकी माँ दरवाज़े पर खड़ी होकर हैरानी से उसकी बातें सुन रही थी.
"नैना, कौन आ रहा है? कौन से ज़रूरी कागज़ों की बात कर रही हो?" माँ ने चिंतित होते हुए कहा.
"माँ... मैं, अपनी आँखें दान करना चाहती हूँ." नैना ने माँ का हाथ थामते हुए कहा.
"क्या???? दिमाग खराब हो गया है तुम्हारा; कैसी बाते कर रही हो? मांजी, आप ही इसे समझाइये.... लगता है, इसका दिमाग खराब हो गया है." माँ गुस्से में बोली और नैना की दादी चश्मा ठीक करते हुए नैना को देखने लगी.
"माँ; इसमें गलत क्या है. कितने व्यक्ति है, जो इस खुबसूरत दुनिया को देखने के लिए तरस गए है. आँखे ही क्या; ऐसे भी कितने लोग हैं, जो अपने शरीर के किसी अंग के खराब हो जाने पर, उसकी जगह किसी के दान किये गए अंग के इंतज़ार में आस लगाए रखते हैं. शरीर के किसी एक अंग के खराब होने के कारण, उनकी ज़िंदगी खतरे में आ जाती है, जिससे व्यक्ति और उसका परिवार निराश हो जाते है. ऐसे में मृत्यु के बाद, किसी व्यक्ति विशेष द्वारा यदि अंग दान कर दिया जाये, तो वह उसके लिए पुनर्जन्म के समान होगा." नैना माँ को समझाते हुए बोली.
"अच्छा!! ये अंगदान कैसे होता है; और क्या बीमार व्यक्ति भी अंग दान कर कर सकता है या जैसे किसी की आँखे कमज़ोर हो तो वो इंसान भी अपनी आँखे या अपने शरीर का कौन सा हिस्सा दान कर सकता है?" नैना की दादी, हैरानी से, प्रश्नों की बौछार लगा देती है.
नैना की आँखों में एक चमक सी आ गई. "दादी पहले आप आराम से बैठो. दादी; अंगदान में आँखे, दिल, किडनी, लिवर, फेफड़े, पेन्क्रिया और बहुत से अंग दान किये जा सकते हैं. कुछ कारणों में, अंगदान करने वाला व्यक्ति जीवित या मृत हो सकता है. इसके अलावा अंगदान करने वाला 8 से ज़्यादा ज़िंदगियाँ बचा सकता है. दादी, अंगदान को लेकर बहुत सी भ्रांतियां है. अंगदान; कोई भी व्यक्ति, कितनी भी उम्र का हो, अंगदान कर सकता है. यदि वह कुछ चिकित्सीय शर्तो और मापदंडों को पूरा करता है. कई बार बीमारियों से कुछ अंग खराब हो जाते हैं, तो उन प्रभावित अंगों को छोड़कर, बाकी अंगों का दान किया जा सकता है और आप अपने अंग सिर्फ, अपने परिवार के या रक्त सम्बन्धी सदस्यों को ही नहीं, बाहर के लोगों को भी अंगदान किया जा सकता है."
"दादी; आपको पता है की 13 अगस्त को; "विश्व अंगदान दिवस" मनाया जाता है." नेहा मुस्कुराते हुए, कनखियों से, माँ की तरफ देखती है. (क्योंकि अगस्त को माँ का जन्मदिन होता है.)
"लेकिन, किसी की मृत्यु के समय, वो पल बहुत ही संवेदनशील होता है और ऐसे समय पर अंगदान की बात की जाये तो...." माँ के स्वर में वेदना स्पष्ट सुनाई दे रही थी.
"हां! माँ; जानती हूँ... वो पल बहुत ही कष्टदाई होता है, लेकिन दुनिया से जाने के वक्त, वो कई लोगों को ज़िंदगी दे सकता है और साथ ही उसके परिवार वालों के चेहरे पर मुस्कुराहट.... जिसका कोई मोल नहीं." नैना ने माँ को गले लगाते हुए कहा.
"आप किसी को नया जीवन दे सकते हैं, आप किसी के चेहरे पर फिर से मुस्कान ला सकते हैं. आप किसी को फिर से ये दुनिया दिखा सकते हैं. अंगदान करके आप फिर किसी की जिंदगी को नई उम्मीद से भर सकते हैं. जो न केवल आपको बल्कि दूसरे को भी खुशी देती है." दरवाज़े पर खड़े, नयनतारा अस्तपताल से आये, डॉक्टर बनर्जी के असिस्टेंट; डॉ. मयंक ने मुस्कुराते हुए कहा.
"नैना; तुमने बहुत ही उचित जानकारी दी है. मैं चाहूंगा; की तुम अपने साथियों के साथ, एक टीम बनाओ और दूसरे लोगों को भी अंगदान करने के लिए प्रेरित करो. मुझे तुम पर गर्व है." डॉ. मयंक खुश होते हुए नेहा की पीठ थपथपाते हैं.
"हाँ नैना; मुझे भी तुम पर गर्व है और मैं भी अपनी आँखों के साथ साथ अपने दूसरे अंगों को दान करुँगी" माँ ने नेहा को बाहों में भरते हुए कहा ... "अरे!! मैं नहीं; हम.... और हम सभी दूसरों को अंगदान करने के लिए प्रेरित करेंगे" और दादी भी नैना को आशीष देते हुए बोली.
दोस्तों!! "जब हम अपने अंग का दान करते हैं, तो हम ज़िंदगी ही नहीं बचाते, बल्कि हम भी उनमें ज़िंदा रहते हैं ..." आपकी क्या राय है इस विषय में. कृपया अपने बहुमूल्य विचार ज़रूर साँझा करें.