आज फिर तुझे मुर्दा इमारतों के बीच से देखा
तो लगा की कोई जिंदगी दिखी,
अनायास ही याद आया जब उन घने दरख्तो क बीच से देखा
तो लगा उनके दीदार हो गये।
ऐ चाँद बहरूपिये तो बहुत देखे पर तुझसा नही देखा।
याद है वो बचपन की कहानियाँ , वो दादी के किस्से, वो परियो की कहानियाँ ,
वो बचपन मे उस गांव की छत से तु चंदा मामा नज़र आया,
जब जब जिसे जैसा देखना चाहा उसे विपरीत किरदार मे पाया,
पर तझे उम्र की जरुरतो के हिसाब से ढलते हुये पाया ।
ए चाँद बहरूपिये तो बहुत देखे पर तुझसा नही देखा।