ए चाँद तुझसा नही देखा

आज फिर तुझे मुर्दा इमारतों के बीच से देखा 
तो लगा की कोई जिंदगी दिखी,   
अनायास ही याद आया जब उन घने दरख्तो क बीच से देखा 
तो लगा उनके दीदार हो गये।  
ऐ चाँद बहरूपिये तो बहुत देखे पर तुझसा नही देखा।                                                            

याद है वो बचपन की कहानियाँ , वो दादी के किस्से, वो परियो की कहानियाँ , 
वो बचपन मे उस गांव की छत से तु चंदा मामा नज़र आया,             
जब जब जिसे जैसा देखना चाहा उसे विपरीत किरदार मे पाया, 
पर तझे उम्र की जरुरतो के हिसाब से ढलते हुये पाया ।                                   
ए चाँद बहरूपिये तो बहुत देखे पर तुझसा नही देखा।


तारीख: 09.06.2017                                    प्रतीक यादव




रचना शेयर करिये :




नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है