ऐ ज़िन्दगी अब तू ही बता
अब तू ही बता फिर एक बार,
क्या है तू चाहती, क्या तुझे पाना है,
क्या जीना है और, या मौत को अपनाना है,
क्या रहना है ख़ुशी ख़ुशी या गम को गले लगाना है,
लड़ना है कठिनाइयों से या फिर मुंह छुपाना है,
पाना है मंज़िल को अपनी या थक के बैठ जाना है,
छू लेना है आसमानों को या फिर मिट्टी में रह जाना है,
जीना है अपनों के संग या अकेले घुट के मर जाना है,
ऐ ज़िन्दगी अब तू ही बता,
क्या है तेरा ठौर और कहाँ तेरा ठिकाना है।।