ऐ धर्म की रक्षा करने वालों
चंद किताबों पे लड़ने वालों
तुमसे अधमी नहीं है कोई
जान मानव की हरने वालों
तुम जो बंदूक़ लिए फिरा करते हो
मज़हब का परचम ताने
अवाचित रही क़ुरान व्यर्थ सब अजानें
खुदा को ज़रा भी तुमने जाना होता
आदम को आदम तो माना होता
ऐ झूटे जिहाद पे मरने वालों
तुमसे अधमी नहीं है कोई
धर्म की रक्षा करने वालों
तुम जो भगवा ओढ़े फिरते हो
महादेव के नारों पे
मरने मिटने को तैयार राम के जयकरों पे
जात पाँत ऊँच नीच को दिल से अपनाया है
आडंबरों के सूखे पेड़ को युगों पानी पिलाया है
जानवर के नाम पे जान नर की हरने वालों
तुमसे अधमी नहीं है कोई
धर्म की रक्षा करने वालों
नहीं ज़रूरत हिंदू की ना मुसलमान की
झूठे सब पुराण नक़ली बातें क़ुरान की
जो इंसा को प्रेम सिखा ना सके
क्या ज़रूरत ऐसे भगवान की
ऐ धर्म को धंधा बनाने वालों
तुमसे अधमी नहीं है कोई
धर्म की रक्षा करने वालों
Note- अगर आपको ये कविता पढ़कर मुझे जान से मारने की इच्छा नहीं हो रही है तो बधाई हो दुनिया को आप जैसे लोगों की ज़रूरत है