मंदिर की सीढ़ियों पर खड़ा
वो बच्चा
फटी बिवाईयां
भूखी जीर्ण देह
उदास
देखता अपने हमउम्र बच्चों को
'तुम्हारा जोड़ा सलामत रहे'
बोलते हुए
पा जाना
रूपया दो रूपया
कभी कभी दुत्कार
कैसे बोले वो कि आज दो दिन हो गए
उसे खाना नहीं मिला
कि 10 साल का वो भूखा बच्चा
भीख कैसे मांगे?
कि
भले ही
वो है बहुत छोटा
उसे तो भूख लगी है
.....
विचारों की श्रृंखला टूटी
धरातल पर पैर
आह! ये डामर वाली गरम रोड
मेरे पैर जल रहे हैं
मंदिर में भी खाली बैठने की जगह नहीं
दुत्कार दिया उस 'पूजनीय' पुजारी ने
'ऐ हट चल! आ जाते हैं गंदगी फैलाने
पिल्लों जैसे पैदा करके मरने छोड़ देते हैं मरभुक्खों को, भिखमंगे कहीं के। ऐ हट उधर'
पिल्ला!
हां था तो एक पिल्ला
और एक घर भी था
सब तो थे वहां
बाबा दादी बाबूजी मां और दीदी
हम सब गए थे गंगासागर महीसागर संगम तीर्थ
शायद बड़ा स्नान था उस दिन
बहुत भीड़ थी
आदमियों का महासागर
मैंने कस के बाबूजी का हाथ पकड़ रखा था
चेहरा थोड़ी दिखेगा इतनी भीड़ में
हाथ ही तो था
पकड़ा भी था
जाने कैसे छूट गया
मैं तो बोल भी नहीं पाता
मेरे ही हिस्से की मन्नत थी
कि मेरी बोली वापस आ जाए
बाबूजी! मां!
यहां हूं मैं!!
पर मुंह से 'गों गों' के सिवा कुछ ना निकल सका
मां समझ जाती थी मेरे ये अस्फुट बोल
यहां
इतना बड़ा आदमियों का महासागर
कोई ना समझा
बाबूजी मुझे ढूंढ रहे
'मां! मां!! इधर देखो'
उस महासागर ने मुझे लील लिया
दब गया मैं
उस भीड़ में
लगा जैसे मर ही तो गया
बाबूजी दूर मुझे ढूंढ रहे
मां बदहवास
मेरी दीदी अपने बाबू का इंतजार कर रही है घर पे
वो ननमुन मेरा पिल्ला
'गों गों गों'
अंधकार..
सर घूम रहा है
शून्य
महामौन!
घटाटोप अंधेरा..
फिर आंखे खुली तो खुशी से झूम उठा मैं
मां!
अरे ये मैं कहां हूं
इतने लोग
बाबूजी मां भी यहां नहीं दिखाई देते
दूर दूर तक बस ये डॉक्टर
सफेद कपड़ों वाली नर्सें
कोई कह रहा है कि
भगदड़ में बहुत लोग मर गए
मैं जिंदा हूं?
घर कहां है?
मुझे बोल क्यों ना दिये 'दयालु' भगवान!!
.........
15 दिन हुए
घर से कोई क्यों नहीं आया मुझे लेने?
मुझे घर जाना है
मां! कहां हो?
सर बहुत दर्द हो रहा
बुखार भी है
मैं घर आ रहा हूं लेकिन
लेकिन ये तो मैं भटकते भटकते भगवान के घर आ गया
पर यहां भी जगह नहीं।
तुम क्यों हो जगतपिता?
पिता?
बाबूजी बहुत प्यार करते हैं मुझे
दुलारा हूं मैं
मुझे भूख लगी है
कैसे बोलूं मैं?
घर जाना है मुझे
मां मुझे घर आना है।