बहन का प्यार चाहता हूँ
माँ का दुलार चाहता हूँ
इन अमूल्य कुदरत की देन को
फिर क्यों मैं मार गिरIता हूँ
दादी के आँचल में छुपकर
दुनिया का डर भुलाता हूँ
नानी की गोद में सर रखकर
अक्सर मैं सो जाता हूँ
राखी के धागो के लिए
हज़ारों कसमे खाता हूँ
फिर न जाने किस स्वार्थ के लिए
क्यों इन्हे मार गिराता हूँ
भारत को भी माता कहता हूँ
पर सर नहीं झुकाता हूँ
गाय को भी माता बोलकर
उसका अनादर कर जाता हूँ
एक माता की पूजा कर
पुत्र की कामना कर आता हूँ
पुत्री को जन्म देने पर
एक माता का उत्पीड़न भी कर जाता हूँ
एक अच्छी साथी की कामना करता हूँ
पर उसे जन्म नहीं देना चाहता हूँ
पुत्री का नाम सुनते ही, मैं इतना गिर जाता हूँ
कि नीचता कि कसौटी पर, भ्रूण हत्या कर आता हूँ
कब शर्म आएगी मुझे
कब मैं खुद से नज़र मिलाऊंगा
कब मैं नारी का सम्मान करूँगा
कब एक बच्ची को बचाऊंगा