हे प्रिय ! लौट आओ ,लौट आओ ।
तुम मेरे तन के प्राण सरीखे ,
फिर से दिल धड़काओ ।। हे प्रिय !...
तुम बिन यहाँ कुछ न सुहाता ।
तेरे विरह का दुःख न समाता ।।
मुझ विरही पर विरह भी रोता ,
आके इसे चुप कराओ । हे प्रिय !........I
देखों वन में राम भी हैं जाते ।
चौदह बरस पे वापस आते ।।
मौसम सारे फिरि फिरि आते ,
तुम भी तो अब आओ। हे प्रिय !........
तुम क्या गये कि फिर नही आये ।
तुम को यहाँ हम कितना बुलाये ।।
प्रतीक्षा में तेरी धीर खो रहे हम,
आकर धीर धराओ। हे प्रिय !........
सबको छोड़ा जग को छोड़ा।
नेह का बंधन पर न तोड़ा ।।
टूटे न डोरी आस विश्वास की ,
प्रीत की लाज बचाओ ।
हे प्रिय ! लौट आओ ,लौट आओ ।।