हाँ आ रहा हूँ हार के
जो हो गया वो मान के
हैं ज़ख्म पे नमक गिरे
डाली सा टूट टाट के
तो क्या हुआ तो गिर गया
मैं सीख तो रहा हूँ ना
हाँ भले हक़ के लिये
मैं चीख तो रहा हूँ ना
संगीत का मैं राग हूँ
मैं घर का चिराग हूँ
विषम अहित अनुराग को
मैं त्याग तो रहा हूँ ना
विजयी भ्रमड के रास्ते
मैं भाग तो रहा हूँ ना
है ज़िन्दगी बड़ी अजीब
मैं जी तो रहा हूँ ना
जो मर गए भगवां मिले
मैं हूँ यहाँ जीवित खड़ा
हाँ माना स्वप्न हार के
मैं रो रहा ये मान के
अरे कुछ नहीं बस हूँ गिरा
ये कुछ दिनों की बात है
ले उठ ज़रा मैं हूँ खड़ा
और लड़ भी रहा हूँ ना
उग्र ये समाज सब मैं
झेल तो रहा हूँ ना
समुद्र की मैं नाव हूँ
विभिन्न सा मैं भाव हूँ
कभी कभी तनाव हूँ
और सीख भी रहा हूँ ना
है ज़िन्दगी बड़ी अजीब
मैं जी तो रहा हूँ ना
हर जगह अन्धेरी बात हूँ
जब देखो काली रात हूँ
वो तारे बन के छिप गए
मैं कल का सुर्य ताप हूँ
अग्नि स्वयं भरपूर है
तभी तो भीषन तेज है
कुछ क्षण का इंतज़ार कर
सफ़र सा कर रहा हूँ ना
उन चीटियों के सामने
भी बौना लग रहा हूँ ना
मोतियों के रूप में मैं
अश्क का भंडार हूँ
अभी तो कश्मकश ज़रा
पानी सा लग रहा हूँ ना
है ज़िन्दगी बड़ी अजीब
मैं जी तो रहा हूँ ना
बड़ी कठिन है बापरे
ये हौसले तुड़वाएगी
हार जो तूने मान ली
ये जीतते ही जायेगी
मन से बड़ा नहीं है कुछ
यही तो जीतना है बस
जो जीतते यहाँ गया
तो सारा कुछ ही खास है
एसी मुश्किलें तो बस
मैं झेलता रहा हूँ ना
काँटों वाले फ़ूल से मैं
खेलता रहा हूँ ना
तभी तो मैं यहाँ खड़ा
तुझे बता रहा हूँ ना
है ज़िन्दगी बड़ी अजीब
मैं जी तो रहा हूँ ना