मेरे यार मुसाफिर ज़रा ये तो बता 

 

किस शहर से आया है तू, क्या है तेरा पता 
मेरे यार मुसाफिर ज़रा ये तो बता 

कहीं रस्ते में तुने देखा तो नही 
दो अमरुद के पेड़, एक पानी का नल्का
एक छोटी सी क्यारी से फुनगता पौधा 
क्या उस मेड़ से गुजर कर आया है तू ....
मेरे यार मुसाफिर ज़रा ये तो बता 

देखा क्या तूने, उसी चौखट पे बैठी इक औरत को 
उसकी आँखे जैसे ढूंढ रही हो किसी को ,
क्या गौर किया तुने उन सुनी आँखों पर 
बिछड़ने का गम जिनसे छलक रहा था रह-रह कर  ,
यादों की गलियां है उस शहर में, सपने बिका करते हैं जिनमे ...
क्या उन गलियों से गुजर कर आया है तू, 
मेरे यार मुसाफिर ज़रा ये तो बता

वीरानियाँ हम साया हैं, और तन्हाईयाँ इठलाती हैं वहाँ अब 
उजियारी रातों में परछाईया घबराती है वहां अब 
पर अब भी माँ ख्वाबों को संजोती है 
एक दस्तक की आस में, रात भर ना सोती है 
क्या उस दस्तक की गूंज सुनी है  तुने 
मेंरे यार मुसाफिर ज़रा ये तो बता 


ज़रा खुल के बता क्या मेरे शहर से आया है तू 
मेरे यार मुसाफिर किस शहर से आया है तू 


तारीख: 07.07.2017                                    वरुण कुमार मौर्य




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