हूँ ना किसी काम का
मैं ये कैसे मान लूँ
क्यों उमंगों को मैं अपनी
मायूसियों के संग बाँध दूँ
जब तलक है फलक पर
चाँद और रौशन सितारे
मैं उठूँगा जोश से,मैं जगूँगा होश से
कौन कहता है कि ये....
तृण-धूल है न,काम के
मैं कहता हूँ उन्हें बात करें ज़रा ध्यान से
सौ बार गिरकर भी तुझे
मैं उठूँगा ललकारते
ये चुनौती है कठिन
नाकामियों को मात दे
मैं उठूँगा फिर एक बार
ये मेरा 'संकल्प' है 'खुद से'