सोया खुद है तो खुदा को जगाता क्यों है?
रोज मन्दिर में जा के घंटी बजाता क्यों है?
काबिल गर बनाया है तूने औलाद को,
दहेज के लिए फिर हाथ फैलाता क्यों है?
इश्क़ का नशा जो हो गया एकबारीगी,
मयखाने की तरफ अब जाता क्यों है ?
नफरत हो गई है मुझे उसके नाम से भी,
उसी को याद कर दिल आंसू बहाता क्यों है?
मुठ्ठी में नमक लिए फिरते हैं सब शहर में,
ज़ख्म किसी गैर को अपने दिखाता क्यों है?
मैंने मान लिया है वो अधूरा ख़्वाब है मेरा,
वहीं शख़्स ख़्वाब में हर रात आता क्यों है?