भरी कलाई,तन्हा हो पूछती है
वो धागा कहाँ है
लम्बे वक्त तक सजता था?
खमोशी,दिल बैठा रही है! मेरा
कहो! जबाब दो
क्यों,भरी कलाई, खाली लग रही है?
किसे,खोया तुमने
कैसे, खोया तुमने
में,कुछ ना कर सकी
या! तुमने कहा नही मुझसे?
नही-नही, मुझे ये धागे चुभते है,आज
वो धागा ही था, जिसके साथ मिलकर
ये सारे धागे,मेरे गर्व का विषय थे
अब वही नही?
ये कलाई,बढती जाती है।
ढँकती ही नही!
वो एक धागे की जगह।
तुमने,एक वचन तोडा
रक्षा का वचन
कैसे तुम ,फिर से, और वचनों को
अपनी कलाई पर,बाँधने के हकदार हो ?
ये ढोंग है,तुम्हारा
तुम किसी की सुरक्षा करने के योग्य नही
किसी के प्यार के हकदार नही
उतार दो ये सारे धागे
बंद करो छलावा
नही तो, ढक कर दिखाओ
वो एक धागे की जगह।
यह अग्रलिखित रचना मैंने स्वर्गीय बहन की स्मृति में लिखी जो हमें अपूर्णीय क्षति प्रदान कर गत वर्ष 09-12-2016 को 27 वर्ष की अल्पआयु में श्री हरि के चरणकमलों में चली गयीं। उन्होनें अपने जीवन में ना सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में बल्कि अपनी व्यवहार कुशलता के कारण सभी मित्रों,परिवार जनों में भी अपनी छाप छोडी।
स्व• रमा शर्मा पुत्री- राधेश्याम शर्मा