अभिलाषा

हो सरल सुलभ सा जीवन मेरा
जहाँ कोई भाव जगे न तेरा मेरा
ऐसे जग को मनमीत लिखूं मैं

कुछ खट्टी मीठी यादों को चुन
सुख दुःख की चादर को बुन
कुछ परम पुनीत गीत लिखूं मैं

अपने पराये दोनो पलड़े में
मान मनुहार और झगड़े में
गरल हटा कर प्रीत लिखूं मैं

मंजिल कहाँ सुलभ सबकी
संग कथा रही कंटक पथ की
हैं अंत भला तो जीत लिखूं मैं

आते जाते है उतरांव चढ़ाव
हँसना रोना जीवन का भाव
सो मिश्रित सुर संगीत लिखूं मैं

पतझर हरियाली पे करें प्रहार
तद बसन्त लौटाए अतुल बहार
दोंनो का सुखद अतीत लिखू मैं

रवि आभा से दिव्य मंडल सारा
किन्तु तम में जुगनू से उजियारा
क्यूं न रीत संग विपरीत लिखूं मैं

पूनम कभी अमावस सी रातें
मान अभिमान संघर्षों की बातें
दम्भ त्याग मात्र विनीत लिखूं मैं

सर्वइंद्रिया यदि वश में हो जाती
होती मानुस संग संतुष्टि की थाती
हो संभव तो जीत लिखूं मैं
गरल हटा कर प्रीत लिखूं मैं


तारीख: 18.04.2024                                    नीरज सक्सेना









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