अकेलेपन की आहटो का दौर जब आया..
बंद कमरों में गूंज सा उठा कुछ,
कहीं अंधेरो में बिखर पड़ा कुछ,
तो कहीं उजालों का अहंकार टूटता नज़र आया।
अकेलेपन की आहटो का दौर जब आया
सन्नाटों ने फूँक दिया कानो में कुछ,
हवाओ ने की गुफ्तगू सी कुछ,
फिर जलने लगा हर वो लम्हा,
जो मोम सरीखा होकर भी,
पिघल न पाया।।
अकेलेपन की आहटो का दौर जब आया
भटकती आँखे अंधेरो में,
छत से टकराकर रुक सी गई,
किसी अधूरे स्वप्न की तालाश में,
नज़रे कहीं थम सी गई,
लाख परिश्रम कर के भी,
मै इस चंचल को छल नहीं पाया।।
अकेलेपन की आहटो का दौर जब आया
फिर कहीं किसी ने अचानक यूँही,
जैसे कोई चुप्पी सी तोड़ी,
फिर गूंज उठी एक करुण पुकार,
व्यर्थ एक कोशिश की हमने भी थोड़ी,
मगर दब सी गयी कहीं पर ये,
पर ये तो मेरा अंतर्मन था....
चाह कर भी मै जिसे सुन न पाया,
अकेलेपन की आहटों का दौर जब आया।