अंधेरी कोठरी

हमारे गोले का
एक बड़ा हिस्सा
श्मशान में तब्दील हो चुका है
यहाँ लाशें चलती हैं
और जिंदा..
अँधेरी कोठरी में बंद हैं

ये अंधेरों से नहीं घबरातीं
रौशनी की शीतलता
इन्हें जलाती है
चीख उठती हैं ये,
तड़पती हैं,
और उससे भागना चाहती हैं

नहीं नहीं...
ये अभी-अभी
तो हरगिज नहीं हुआ
सदियों से इसकी शुरुआत है
जब तराशी गई थी बुत
काट दिए गए थे हाथ
कोयले की भट्टी में
झोंक दी गयी थी मनुष्यता

जब भी प्रेम को
नींद की गोली देकर
कफ़न में लपेटा जाएगा
और सुला दिया जाएगा ताबूत में
तब तो डरेंगी ही चिड़ियाँ
मुरझाने लगेंगे फूल
और दहक उठेगा सारा सहरा

जब सिर्फ मीथेन होगा
फिर रहा होगा...
बालू,पत्थर और बर्फ
उम्मीद की फुहार
तब भी बरसीं होंगी
बड़े-बड़े पत्थरों ने
जरूर देखा होगा जीवन

फिर
काल ने...
बड़ी ही बारीकी से
पत्थरों को तराशा
दे दिया गया अपंग तराजू
बना दिया
गूँगा बहरा


तारीख: 25.04.2024                                    नीतू झा









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