हम न कह पाए

बात इतनी सी थी पर बात हम न कह पाए
उससे मिलने को मुलाक़ात हम न कह पाए।

खुदकों इतना था भिगोया अश्क़ों से हमने
तेज़ बारिश को भी बरसात हम न कह पाए।

हम से वो हर दफ़ा हारा पर इस क़दर हारा
उसकी किसी हार को मात हम न कह पाए।

काश एक मर्तबा तो हमको देख लेता ढंग से
उसके देखने को तो ख़ैरात हम न कह पाए।

हमें उस बे-वफ़ा के जाने का दुख नहीं मगर
ग़म है उसे ज़ोर से बद-ज़ात हम न कह पाए।
 


तारीख: 07.03.2024                                    जॉनी अहमद क़ैस









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है