घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है,
शायद मेरी दिल्लगी तुझ पर मेरा एहसान है।
झूमता हूँ मैं नहीं मयखाने की तासीर से,
अब तो मेरी आँखों में बस इश्क का परवान है।।
इक तरफ से चमचमाती है तू हीरे नूर की,
इक तरफ से गर्त सी है आइना-ए-हूर की।
है मेरी उम्मीद छोटी, पर बृहद अरमान है,
घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है।।
मानता हूं प्यार ना करती थी तू मुझसे कभी,
अब समझ में आया है क्यूँ हँसते थे मुझपर सभी।
हुस्न तेरी ये धरा, तो इश्क मेरा आसमान है ,
घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है।।
याद है बरगद की डाली और मैं तेरे साथ था,
तेरे मलमल के दुपट्टे में बंधा मेरा हाथ था ।
याद है तूने कहा था आ कर मेरे कानों में ,
की तू ही मेरी जिन्दगी अब तू ही मेरी जान है ।।
प्रेम है मन का समर्पण, आत्मसात और बन्दगी,
हो गये कितने ही काफ़िर न्यौछावर कर जिंदगी।
वेदों का सन्देश है यही, कहती यही कुरान है,
घमण्ड है अमीरी का या खुद पर बहुत गुमान है।।