जब कलम ने झटकी स्याही
जब जब कलम ने झटकी स्याही
दिल की हर वेदना गहराई,धड़कन भी पर खोल पाई
कभी ये आँखें डबडबाई, कभी हौसलों ने पींगें बधाई
कभी कवि की कविता बन पाई,कभी गीत ग़ज़ल लिख पाई
कभी भावना कागज़ पर आई,कभी मन हल्का कर पाई
जब जब कलम ने झटकी स्याही
कभी किसी की याद है आई,कभी रिश्तों की गहराई
कभी किसी की हौसला अफ़जाई,तभी स्वतंत्र हो लिख पाई
कभी कलम रोई, कभी मुस्काई,
कभी स्याही फैली, कभी कंपकंपाई
कभी जीते जी मौत है आई,कभी मौत में भी जान पाई
जब जब कलम ने झटकी स्याही
कभी वीरों की वीरता सुन पाई,कभी शहीदों की शहादत में नहाई
कभी सफलता की गाथा बन पाई,कभी सीमा की टुकड़ियाँ नज़र आईं
कभी घर आँगन में बजी शहनाई,कभी सूने मंज़र ने व्यथा सुनाई
कभी दिल ने ली अंगडाई,कभी कभी हर आँख नहाई
जब जब कलम ने झटकी स्याही
कभी किसी ने लीला रचाई,कभी प्रभु की महिमा गाई
कभी मिलन के गीत सुनाए,कभी विरह की ग़ज़ल है गाई
कभी प्रेमी का श्रृंगार बन पाई,कभी वियोगी की वेदना पाई
कभी शब्दों में गिले-शिकवे,कभी माफ़ी की गुहार लगाई
जब जब कलम ने झटकी स्याही
कभी माँ की लोरी सुनाई,कभी यारों की यारी आई
कभी सुरों ने ताल सुनाई,कभी मौन आवाज़ बन पाई
कभी मीलों दूर पहुँच पाई,कभी पास रहकर भी दूरी दिखाई
हर बात खुद में ही गहराई,कभी उलझी हर बात सुलझाई
जब जब कलम ने झटकी स्याही,दिल से इक आवाज़ है आई
जब जब कलम ने झटकी स्याही, सोयी हुई हर चीज़ जगाई,
जब जब कलम ने झटकी स्याही, बेरंग ज़िन्दगी रंग में नहाई
जब जब कलम ने झटकी स्याही, सूनेपन ने हिलौर उठाई
जब जब कलम ने झटकी स्याही