जब शब्द नहीं मिलते।

बोल कैद हैं मन में सारे
नादा है ये सारे के सारे,
फकत ये आंहे भरने लगते है
जब शब्द नहीं मिलते।

हथेलियों को लाख तलाशा
हाथ आई है सिर्फ निराशा,
रेखाए घटने लगती हैं
जब शब्द नहीं मिलते।

वक़्त लगता है चुपचाप बढ़ने
दर्द लगता है पलकों पे उतरने,
हर अश्क कुछ कहता है
जब शब्द नहीं मिलते।

हर रचना धूमिल लगती है
हर स्नेह निर्मम लगता है,
एकांत के दामन में कहीं
ये गला भर आता है,

कभी शब्दों के होते भी...
जब शब्द नहीं मिलते।।


तारीख: 15.06.2017                                    अंकित मिश्रा




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