चुराये फूलों से संवारना
हवा मिठाई से मूंछे गढ़ना
बड़े बुजुर्गों की डायरी को
बिन पुछे छुप छुप कर पढ़ना
बचपन जबसे तुम रूठ गए हो,
हमसे नादानी लूट गए हो,
बिछरती अल्हडपन के साथ मनो ,
बेफिक्री के सपने टूट गए हो
साहस के दिखावे से कतराने लगे है,
पटाखे अब नहीं भने लगे हैं,
आवाज और आग के प्रदर्शन में ,
प्रदूषण के पहलू सताने लगे हैं
कभी कोई पुकार नहीं गंवाते थे,
दोस्त जब खेलने को बुलाते थे,
गेट खुलवाने की किसको फुर्सत,
दीवारों पर छलांग लगाते थे
कीचड भरे पैरों से घुस जाना,
फिर घरवालों का चिल्लाना,
अपना घर हो या दोस्तों का,
सीखा था बातों को नहीं दिल से लगाना