जाते हो तो जाती रहो, इक बात जरा सुनते जाना
सड़कों पे हैं चोर बहुत, चुपके जाना छुपके जाना
हमराही बन के आयेंगे, झूठे ख़्वाब दिखायेंगे,
धीरे से पैठ बनायेंगे, बातों से तुम्हे बहलायेंगे
देखोगे शीशा तोड़ दिया, वो दामन तेरा छोड़ दिया
रोते बिलखते तुमको वो, मंझधार में छोड़ के जायेंगे
फिर भी ग़र .... जाते हो तो जाती रहो ....
मुश्किल से साथी मिलता है, मौजूद जो हरदम होता है,
जो दाग़-ए-नदामत जीता है, जो अश्क़-ए-मुहब्बत पीता है
उनसे ना कभी तुम सकुचाना, उनको ना कभी तुम तड़पाना
खातिर उसकी करना तुम, जो तेरे सारे बवंडर सहता है
फिर भी ग़र .... जाते हो तो जाती रहो ....
तुम बेवजह घबराते हो, झूठा ही सही तड़पाते हो,
हर बार क्यूं पीछे हटते हो, तुम नाहक उनसे डरते हो
यदि आंच का दरिया पा जाओ, और सांसे लेने में घबराओ
यदि दूर ना कोई आस दिखे, सारा जीवन इक फांस दिखे
तो मैं खड़ा रहूँगा तेरे लिए, तुमको बस पीछे रहना है
मैं आगे चलूँगा राहों में, तुमको ये हाथ पकड़ना है.....
फिर भी ग़र .... जाते हो तो जाती रहो ....