बहुत बना ली आड़ी तिरछी रेखाएं कागज़ पर
चलो आज एक कविता बनाते है
पर न जाने क्या है वो
जो कागज पर उतरना नहीं चाहता है
दिल में आता है
भावों में समाता है
कमबख्त कलम पर नहीं आता है
पता नहीं किस सत्य से
डरता है वो
चलो थोडा मन बहला ले
आसमान के तारे गिन् ले
आज चाँद की कसम दे देते है
अब कहाँ जायेगा
देखो आ गया धीरे धीरे धरातल पर
अब घुटन नहीं है
शब्द दौड़ रहे है पूरे कागज पर
इधर उधर चमकीले जुगनु बन कर
कितना कठिन है इनको
अर्थ गर्भित बनाना
भाव तो कुछ भी दे दू
अन्वितार्थ का क्या होगा
समझ् नहीं आता
कुछ ऐसा लिखू जो सबके दिल को छू जाये
किसी की अपनी पीर बन जाए
ख़ुदा से सज़दे में
आज दुआ मांग लेती हूँ
कलम मेरी अपनी हो
भाव तुम्हारे हो
काश खुदा की मुझ पर
आज इतनी इनायत हो जाये