किताबें

किताबें भी कहती हैं शब्दों में 
हमसे कुछ ज्ञान पाते  रहो
हमें भी अपने घरो में फूलो कि तरह 
बस यूँ ही तुम सजाते रहो 

किताबें बूढी कभी न हो तो इश्क कि तरह 
ये ख्यालात दुनिया को दिखाते रहो 
कुछ फूल  रखे थे  किताबों में यादों के 
सूखे हुए फूलो से भी महक 
ख्यालो में तुम पाते रहो 

आँखें हो चली बूढी फिर भी 
मन तो कहता है पढ़ते रहो 
दिल आज भी जवाँ किताबों की  तरह
पढ़कर दिल को सुकून दिलाते रहो 

बन जाते है किताबों से रिश्ते 
मुलाकातों को तुम ना गिनाया करों
माँग कर ली जेन वाली किताबों को 
पढ़कर जरा तुम लौटाते रहो


तारीख: 10.06.2017                                    संजय वर्मा "दर्ष्टि "




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