इस संसार मे माँ को जननी का दर्जा मिला है,
क्योकि माँ की कोख मे नो महीने तक एक नया जीवन पला है!
पर कुछ मांए इस प्यारे से एहसास को समझती है कर्ज,
और एक मासूम को जन्म देकर पुरा कर देती है अपना फर्ज!
अपना फर्ज निभा कर वो तो हो जाती है अपने लाल से दूर,
पर क्या होता है इसमे उस नन्ही सी जान का कोई कुसुर!
वो नन्हा सा फूल पूरी तरह हो ही नही पाता संचित,
रह जाता है अपनी माँ की ममता से वंचित!
उस फूल के मन मै ज़िंदगी भर बनी रहती है ढेरो शंकाए,
कि क्या अपने ही अपनो को कर देते है पराये!
वो कर ही नही पाता है किसी पर विश्वास,
हमेशा उसे होता है कुछ गलत होने का आभास!
इसलिये क्योकि...
जब बन ही नी पाई मै अपनी माँ की जान,
तो कोई क्या करेगा मुझ पर अपना सब कुछ कुर्बान!