कर रहा मेरा समर्पण एक पूजन
जिसमें अधूरे ख्वाबों की मैं आहुति देता रहा हूँ
अब हवन के इस धुंए से इक घुटन चारों तरफ है
साँस भी लेना हुआ दूभर, मुझे आकाश दे दो
अब मुझे आकाश दे दो .....
एक छोटे नीड़ का मैं एक पंछी
और उड़ना ही लिखा है दोस्तों जिसकी नियति में
मैं क्षितिज के पार जाना चाहता हूँ, दूर सबसे
अब मेरे उच्छ्वास, मेरी आस को विश्वास दे दो
अब मुझे आकाश दे दो .....
प्रेम जिसको भी किया वो दूर मुझसे
और जिसको भी दिया सम्मान, मैंने पीर पायी
खोखले रिश्तों में उलझाया रहा मुझको सभी ने
कर चुके अभिषेक मेरा, अब मुझे वनवास दे दो
अब मुझे आकाश दे दो .....