पिया आई है मेरी डोली तेरे अंगना
जरा सुस्ता तो लेने दे
मेरी हाथो की मेहंदी का रंग तो कम होने दे
अभी तो अपने बाबूल के घर की चिड़िया हूँ
मुझे पिजरे कि मैना न बनने दे
क्या हुआ जो हलवा मेरा कम मीठा रह गया
उसको अपनी वाणी की मिठास से तू पूरा करने दे
सब्जी खारी जो थोड़ी सी हो गई
देख मेरा दिल खारा मत होने दे
न ला पाई ज़्यादा दहेज पर
मेरे बाबूल का मान तो रखने दे
आज की नारी हूँ मै
हाँ कुछ अलग सी हूँ मै
अपने पैरो पर खड़ी हूँ मैं
सुन रही हूँ पिया तेरे घर में कैसी कैसी बातें
मेहंदी के रंग से भी हल्की न हो जाएँ मेरी यादें
यह नही है कि मुझे जवाब देना नहीं आता
कमज़ोर नहीं हूँ मैं
पर संस्कारों में पली हूँ मैं
पर क्या करूँ मुझे
किसी को गिराना नहीं आता
मौका आया तो चंडी हूँ मैं
ऐसे रीति रिवाजों से बंधी हूँ मैं
तुम नारी होकर भी नारी का अपमान न करो
तुम माँ हो कैसे ऐसा कर सकती हो
तभी शायद औरत होकर
एक औरत को जन्म देने से डरती हो