सोचा न था

जीवन में ऐसा भी वक्त आएगा, सोचा न था..
अपना हीं पूत इतना सख्त बन जाएगा, सोचा न था।।

जीवन भर जिसे ममता की आँचल में रखा..
कठोर दुनिया से छुपा अपनी काजल में रखा..
वो इस दुनिया से भी कठोर बन जाएगा, सोचा न था।।

जिन हाथों ने उसे चलना सिखाया..
जिस कंधे पर चढा उसे मेला दिखाया..
वो इन बूढे कंधों को सहारा भी न दे पाएगा, सोचा न था।।

नौ महीने जिस भार को कोख में रखा..
बाईस वर्ष जिस  भार को शौक से रखा..
वो इस बूढी माँ का भार भी  न उठा पाएगा, सोचा न था।।

अपनी आँखों में जिसे बसाया..
अपनी आँखों का तारा जिसे बनाया..
उसी के आँखों की किरकिरी बन जाऊँगी, सोचा न था।।

जिस छोटी कमाई में उसे पढाया..
खुद भूखे रह कर उसे खिलाया..
लाखों की कमाई में वो मुझे एक छोटी रकम भी न दे पाएगा, सोचा न था।।

जिस पर अपना प्यार उड़ेला..
जिसके लिए हर दुःख झेला..
वो ही मुझे असहनीय दुःख दे जाएगा, सोचा न था।।

जिसके हर दर्द का प्यार से इलाज किया..
जिसके हर जख्म पर ममता की पट्टी बाँधी..
वो ही मुझे इतना जख्म दे जाएगा, सोचा न था।।

मेरा बार-बार अपमान करने के बाद भी..
मुझे अपनी जिन्दगी से निकाल फेंकने के बाद भी..
वो मुझे इतना याद आएगा, सोचा न था।।


तारीख: 15.06.2017                                    ऋचाँशा ऋजु




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